https://pdf - txt.com/ Page 1 PDF Name Hanuman Pachasaa Hindi Number of pages 8 PDF Category Hindu Devotional PDF Language Hindi Writer N.A. PDF Updated September 5 2023 PDF Size 1.65 MB Design and Uploaded by https://pdf - txt.com/ हनुमान पचसा हहन् दी PDF Index Table https://pdf - txt.com/ Page 2 जय हनुमान दास रघुपति क े । कृपामहोदधि अथ शुभ गति क े ।। आंजनेय अिुलिि बिशािी। महाकाय रविलशष् य सुचािी।। शुद् ि रहे आचरण तनरंिर। रहे सिवदा शुधच अभ् यंिर।। बंिु स् नेह का ह्र ास न होिे। मयावदा का नाश न होिे।। बैरी का संत्रास न होिे। व् यसनों का अभ्यास न होिे।। मारूिनंदन शंकर अंशी। बाि ब्र ह् मचारी कवप िंशी।। रामदूि रामेष् ट महाबि। प्र बि प्र िापी होिे मंगि।। उदधिक्रमण लसय शोक तनिारक। महािीर नृप ग्र ह भयहारक।। हनुमान पचसा हहन् दी https://pdf - txt.com/ Page 3 जय अशोक िन क े विध्िंशक। संकट मोचन दु:ख क े भंजक।। जय राक्षस दि क े संहारक। रािण सुि अक्ष य क े मारक।। भूि वपशाच न उन् हें सिािे। महािीर की जय जो गािे।। अशुभ स् िप् न शुभ करनेिािे। अशक ु न क े फि हरनेिािे।। अररपुर अभय जिानेिािे। िक्ष्मण प्र ाण बचानेिािे। देह तनरोग रहे बि आए। आधि व् याधि मि कभी सिाए। पीडक श् िास समीर नहीं हो। ज् िर से प्र ाण अिीर नहीं हो।। िन या मन में शूि न होिे। जठरानि प्र तिक ू ि न होिे।। रामचंद्र की विजय पिाका। महामल् ि धचरयुि अति बांका।। हनुमान पचसा हहन् दी https://pdf - txt.com/ Page 4 िाि िंगोटी िािे की जय। भक्िों क े रखिािों की जय।। हे हठयोगी िीर मनस्िी। रामभक्ि तनष्काम िपस्िी।। पािन रहे िचन मन काया। छिे नहीं बहुरू पी माया।। बनूं सदाशय प्र ज्ञ ाशािी। करो क ु भािों से रखिािी।। कामजयी हो कृपा िुम् हारी। मां समभाविि हो पर नारी।। क ु मति कदावप तनकट मि आए। क्र ोि नहीं प्र तिशोि बढाए।। बि िन का अलभमान न छाए। प्र भुिा कभी न मद भर पाए।। मति मेरी वििेक मि छोडे। ज्ञ ान भक्क्ि से नािा जोडे।। हनुमान पचसा हहन् दी https://pdf - txt.com/ Page 5 विद्या मान न अहं बढाए। मन सक्चचदानंद को पाए।। िन लसंदूर िगानेिािे। मन लसयाराम बसानेिािे।। उर में िास करे रघुराई। िाम भाग शोलभि लसय माई।। लसन् िु सहज ही पार ककया है। भक्िों का उद्िार ककया है।। पिनपुत्र ऐसी करू णाकर। पार करू ं मैं भी भिसागर।। कवप िन में देित्ि लमिा है। देह सहहि अमरत्ि लमिा है।। रामायण सुन आनेिािे। रामभजन लमि गानेिािे।। प्र ीति बढे लसयाराम कथा से। भीति न हो त्र यिाप व् यथा से।। हनुमान पचसा हहन् दी https://pdf - txt.com/ Page 6 राम भक् क् ि की िुम पररभािा। पूणव करो मेरी अलभिािा।। याद रहे नर देह लमिा है। हरर का दुिवभ स् नेह लमिा है।। इस िन से प्र भु को पाना है। पुन: न इस जग में आना है।। विफि सुयोग न होने पाए। बीि सुअिसर कहीं न जाए।। िन्य करू ं मैं इस जीिन को। सदुपयोग करक े हर क्ष ण को।। मानि िन का िक्ष्य सफि हो। हरर पद में अनुराग अचि हो।। िमव पंथ पर चरण अटि हो। प्र तिपि मारूति का संबि हो।। कािजयी लसयराम सहायक। स् नेह वििश िश में रघुनायक।। हनुमान पचसा हहन् दी https://pdf - txt.com/ Page 7 सिव लसद् धि सुि संपवि दायक। सदा सिवथा पूजन िायक।। जो जन शरणागि हो जािे। त्र त्र भुजी िाि ध् िजा फहरािे || कलि क े दोि न उन्हें दबािे। सद् गुण आ उनको अपनािे।। भ् ांि जनों क े पंथ तनदेशक। रामभक् क् ि क े िुम उपदेशक।। तनरािम्ब क े परम सहारे। रामचंद्र भी ऋणी िुम् हारे।। त्र ाहह पाहह हूं शरण िुम् हारी। शोक वििाद विपद भयहारी।। क्ष मा करो सब अपरािों को। पूणव करो संधचि सािो को।। बारंबार नमन हे कवपिर। दूर करो बािाएं सत् िर।। हनुमान पचसा हहन् दी https://pdf - txt.com/ Page 8 बरसाओं सौभाग् य िृक् ष् ट को। रखो सिवदा दयादृक्ष्ट को।। पाठ पचासा का करे , जो प्र ाणी प्र तिबार। श्र द् िानंद सफि उसे, करिे पिनक ु मार।। पिनपुत्र प्र ाि: कहे, मध् य हदिस हनुमान। महािीर सायं कहे , हो तनश्चय कल्याण।। करें कृपा जन जानकर , हरें हृ दय की पीर। बास करे मन में सदा, लसया सहहि रघुिीर । हनुमान पचसा हहन् दी