ऐसा माना जाता है की कलियुग के शुरुवात मे जब तुलसीदास जी को अत्यंत शारीरिक पीड़ा होने लागि तो उन्होंने हनुमान बहुक की रचना की, और उनके सारे दुख दर्द पीड़ा दूर हो गए।