बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 1 बदन ससिंह चौहान एक जीवन सिंघषष बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 2 लेखक – बदन ससिंह चौहान Copyright © 2025 by Badan Singh Chauhan All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, distributed, or transmitted in any form or by any means, including photocopying, recording, or other electronic or mechanical methods, without prior written permission from the publisher, except for brief quotations used in reviews or critical articles. This book is a work of [fiction/non-fiction]. All names, characters, places, and events are either the product of the author’s imagination or are used fictitiously. Any resemblance to actual persons, living or dead, events, or locales is purely coincidental unless explicitly stated (if fiction). Published by Booksclinic Publishing Empowering Authors, Inspiring Readers Booksclinic Publishing Bilaspur, Chhattisgarh, India Website: www.booksclinic.com Email: booksclinicpublishing@gmail.com SKU Code: 2533 ISBN: 978-93-7254-758-0 Edition Details: First Edition: November, 2025 Genre: Non- Fiction ₹ : /- Credits Cover Design: Aryan Dhiwar Interior Design: Rajesh Kumar Banjare Publisher’s Note Booksclinic Publishing is dedicated to empowering authors and connecting them with over 20 lakh readers globally. The opinions and ideas expressed in this book are those of the author and do not necessarily reflect the views of the publisher. Legal Disclaimer The information provided in this book is for informational purposes only. The publisher and author are not responsible for any errors or omissions or any consequences resulting from the use of the information presented herein. For permissions, bulk orders, or author inquiries, please contact: Email: booksclinicpublishing@gmail.com | Phone: 9109669968 Discover more inspiring stories at www.booksclinic.com Printed in India बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 3 वषष: 20 2 5 बदन ससिंह चौहान एक जीवन सिंघषष लेखक : बदन ससिंह चौहान सम्पादक : बदन ससिंह चौहान मोबाइल नम्बर : 946 8 124228 महा प्र बिंधक ( सेवासनवृत ) - मध्य प्र देश राज्य पयषटन सवकास सनगम वतषमान सनवास - मोहल्ला – मूसाका , गााँव - असल्लका , तहसील / ब् लॉक / सजला - पलवल , ( हररयाणा ) - सपन कोड : 121102 कुटुम् बिं यत्र सन् तुष्ट िं तत्र ै व श् ीीः सनवससत। यत्र कलहीः सदा तत्र दुीःखिं सनवससत॥ अथष: जहााँ पररवार सिंतुष्ट रहता है , वहीं लक्ष् मी (समृसि) सनवास करती है। जहााँ कलह होता है , वहााँ दुुः ख का वास होता है। एकिं व्र णिं कुलिं हसन् त , एकिं कुलिं पुरिं हसन् त। एकिं पुरिं पृसथवीं हसन् त , एकिं दोषिं सनवारयेत्॥ अथष: एक दोषी व् यसि पूरे कुल को नष्ट कर सकता है , एक कुल पूरे नगर को , और एक नगर पूरी पृथ् वी को। इससलए एक दोष को समय रहते दूर कर देना चासहए। बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 4 लेखक – बदन ससिंह चौहान मेरे पररवार को समसपषत मेरी बड़ी पुत्र ी – मधु , मेरी छोटी पुत्र ी – एकता , मेरा पुत्र – कुलदीप , मेरी पुत्र बधू – रू सच मेरी पौत्री - असन्व और ईरा (कुलदीप की पुसत्र यााँ) , मेरे धेवते – अमन व वरु ण (मधु के पुत्र ) , मेरे धेवते – पवष व स् पशष (एकता के पुत्र ) और मेरी पत्नी राजवती मेरे प् यारे बच्चों , - अपने होश सिंभालने के समय से ही तुमने सच् चाई को स् वयिं देखा और समझा है । इस पुस् तक को सलखते समय तुम मेरे पास रहे हो । इसे हमेशा सिंभालकर रखना । हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलना - यही मेरी असली सवरासत है । जब भी सच्चाई की बात होगी , तब तुम् हें मेरी याद अवश् य आएगी । इस पुस् तक को सुरसित रखने की पहली सजम् मेदारी तुम् हारी है । मुझे तुमसे बहुत आशाएाँ हैं । याद रखना - सच्चाई और अनुशासन ही तुम् हारी सबसे बडी सिंपसि हैं । - पापा , बदन ससिंह चौहान (नवम् बर,वषस 2025) बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 5 आप सभी का आभार – मेरे सभी बच् चों ने यह पुस् तक सलखने में मुझे भरपूर सहयोग सदया ये ऊपर सदखाई गई वे चसककयािं हैं सजनको हमारी समय की मसहलायों ने चलाया है और आटा पीसा है । मैंने स् वयिं अपनी मााँ को, अपनी भाभी, अपनी पत् नी राजवती को ये चककी चलाते देखा है । और मैंने बचपन में अपनी बुजुगस असत सम् मानीय बीबी धौरा को भी ये चसककया चलाते हुए देखा है । उस समय सबजली से चलने वाली चसककया बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 6 लेखक – बदन ससिंह चौहान नहीं थी । बाद में एक व् यसि कसहहया बोहरे ने डीजल इिंजन की चककी लगाई थी, सिर भी ज् यादातर मसहलायें अपने घर ही चसककयों से आटा पीसती थीं । बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 7 सवषय सूची क्र मािंक सवषय पृष्ठ निंबर प्र स् तावना 12 लेखक की और से 14 सिंघषस – जीवन का सत्य 22 एकता – मेरी छोटी पुत्र ी 23 लेखक का पररचय 27 सिर लौट आया अपने गााँव की गोद में 30 ध् याय 1 मेरे पररवार का पररचय 3 3 पररवार की महिा व मेरे अपने बारे में 34 मेरे पररवार का विंशावली 40 (खान दान की विंशावली, सशब् बन, धनमत, 41 चाचा अमीलाल ने कुछ जानकारी दी, 52 महत् वपूणस पाररवाररक स् मृसतयााँ 55 जहम सतसथ और मृत् यु की सतसथ, 59 मेरी असली जहम सतसथ के बारे में 61 बीबी धौरा – त् याग , श्र िा और आत् मबल की मूसतस 66 मााँ मामकौर और हमारे पररवार की स् मृसतयााँ 7 0 जीवन का सिंघषस: एक सच् ची कहानी 71 जहााँ सपता जी ने जीवन में सुख देखे , वहााँ उससे कहीं असधक दुुः ख भी झेले । 75 एक नया अध्याय — मामकौर से जीवन का पुनरारिंभ - 76 महाशय अमीलाल लाल जी : एक सच्चे समाजसेवी और कमसयोगी मेरी 77 बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 8 लेखक – बदन ससिंह चौहान बडी भुआ परसिंदी की म्र त् यु हो गयी 80 राजवती मेरी पत् नी का सिंघषस 81 मेरे पररवार की कहानी - कुछ मीठी , कुछ कडवी 88 वेदना और दूरीयािं 91 पररवार का महत्त्व और भाई का प्र े म 94 पररवार की कुछ जानकाररयााँ 96 सोसनका की शादी 97 सोनू (अरसविंद ससिंह) का दूसरा सववाह - 18 अप्रैल 2025 को 9 9 शीषसक: बचपन की यादों में बीबी धौरा का प् यार 104 हमारे घर की समट्टी में बसे वे लोग 105 अध्याय - 2 नौकरी और सिंघषस 107 10 माह तक वेतन नहीं समला , पर आत्मसम्मान नहीं खोया 108 सत्य , ईमानदारी और सिंघषस की अमर यात्र ा) 110 चुनौतीपूणस सफ़ र — मध्य प्र देश पयसटन सनगम 115 उिर प्र देश पयसटन की यादें — सेवा , सिंस् कृसत और सिंतोष की कहानी ‘ पररवार – समाज की मूल इकाई और सवश्व बिंधुत् व का आधार 118 अध्याय 3 लेख 121 कुलदीप ससिंह चौहान - मेरी मााँ – मेरा आदशस 122 मधु ससिंह चौहान - प्र ाथसमक सशिक का महत्त्व 127 मेरी खेती का अनुभव — स् वावलिंबन की नई राह 133 अहवी ससिंह चौहान - सवद्यालय जीवन 135 एकता ससिंह - पापा और मैं - हररद्वार की वह याद 138 ईरा ससिंह चौहान 140 बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 9 ईरा ससिंह चौहान - अनुशासन और सजम् मेदारी पर 143 राजवती ससिंह चौहान - रू स़िवादी सोच से आत्मसनभसरता की ओर 146 अमन ससिंह चौहान - 21 वीं सदी – तकनीकी युग 149 स् वाथस व लालच – सिंवेदन शील सवषय 151 मेरे सपनों की उडान – सिंदीप 156 भाई भीम ससिंह – मध्य प्र देश की यात्रा 158 भाइयों के बारे में 159 भाई का आगमन , बहन का असभमान 170 मेरा गुस् सा - आत् मसिंघषस की एक यात्र ा 171 वापसी अपन गााँव 174 भगत ससिंह का बॉसकसिंग चैंसपयन - मेरे गााँव का गौरव 177 स् कूटर की लम् बी यात्र ा 178 लेखक: राजपाल 182 कुछ सबिंदु – अमीलाल के पररवार के बारे में 193 हमारे पृथला वाले ररश् तेदारों का असमट प्र े म - 1958 की भयिंकर बा़ि की याद 194 ररश् तों की मधुर स् मृसतया 195 लेखक – मुस् कान , स् थान – अल्लीका 197 राजवती की सहम्मत 199 आजकल की मेरी सदनचयास – वषस 2023 200 कुछ सबिंदु 201 बाबा बेटों के पास कयों नहीं रहना चाहते थे ? 202 बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 10 लेखक – बदन ससिंह चौहान समट्टी की गोद में मेरा बचपन 204 मेरे सपता — अिरहीन , लेसकन दृ सष्टवान 205 77 वषों में मैंने जो देखा 206 मेरा बेटा मोनू – मेहनत और सिलता की कहानी 208 नारी का सम्मान 209 पुराने समाज में मसहलाओिं से भेदभाव और अत्याचार 212 सकारात्मक योगदान – बच्चों को प्र े ररत करना 216 "वह मेरी आवाज़ था" — श्र ी असश्वनी लोहानी जी की सवदाई के सदन 219 हमारी सोच और उसे तय करने वाले कारण 221 सिलता 223 मध्यप्रदेश पयसटन सनगम का सहयोग – सबसटया की शादी का असवस् मरणीय अनुभव 225 सच्चाई की राह पर 227 बेटे की शादी – एक याद और एक सिंघषस 229 शीषसक: समय , मेहनत और सच्चाई – मेरे जीवन के साथी 233 मेरी प्र े रणा और मेरा मागस - वरु ण ससिंह चौहान 236 वेदना के उन वषों की गूाँज 238 AI: मानव जीवन की सरलता और सनभसरता – अमन 242 कुलदीप ससिंह चौहान (लेखक का पुत्र ) का लेख 244 अध्याय 4 अिंत में 247 जीवन के ससिािंत 248 बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 11 मेरे शौक – सलखना, पढना, खेती करना, पुस् तकें सिंभल कर रखना मेरी पसिंद का भोजन – रोटी, उडद की दाल, खीर मेरा पसिंद का सिंगीत – पहली पसिंद मुकेश, सिर रफ़ी , सकशोर और लता के ददस भरे गाने मेरा सफ़ल्मी हीरो – मनोज कुमार पहली पसिंद, सिर सदलीप, देवानिंद, धमेहर, बलराज साहनी, --- मेरी सफ़ल्मी हेरोइन - पहली पसिंद माला ससहहा मेरा आदशस – श्र ी ओमप्रकाश शास्त्री (देवदि) मेरी आदशस मसहला – हमारी बीबी धौरा युवाओिं के सलए – दो शब्द - सिंघषस से घबराना नहीं 249 मानवता और सशिा – जीवन का सच्चा धमस 251 समाज में मानवता का महत्व 252 पुस् तक का उद्द े श् य 253 समापन सिंदेश 256 कृसत्र म बुसिमिा: नौकरी छीनने वाली या नई नौकररयााँ देने वाली ? 258 िोटो हमारे पूरे पररवार की िोटो 260 बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 12 लेखक – बदन ससिंह चौहान प्र स् तावना जब मैंने अपने पापा , श्र ी बदन ससिंह चौहान , को इस पुस् तक पर काम करते देखा , तो मुझे यह एहसास हुआ सक यह मात्र शब् दों का सिंकलन नहीं है , बसल्क उनके जीवन की सच्ची गाथा है — सिंघषस , साहस , समपसण और आत् मबल की एक जीविंत कथा । यह पुस् तक उन पलों की सािी है जब उहहों ने कसठनाइयों के बीच भी उम्मीद का दामन नहीं छोडा और अपने आदशों पर असडग रहे । मेरे सलए पापा केवल एक सपता नहीं , बसल्क मेरे पहले मागसदशसक , प्र े रणास्रोत और नायक हैं । उनके जीवन की प्र त् येक घटना , प्र त् येक चुनौती और प्र त् येक उपलसब् ध , इस पुस् तक में सजस सहजता और सजीवता से असभव्यि हुई है , वह पाठक को सीधे उनके अनुभवों से जोड देती है । इस पुस् तक को पढ़ ते हुए ऐसा प्र तीत होता है मानो हम उनके साथ - साथ उन सिंघषों से गुजर रहे हों , सजनसे उन्होंने अपने जीवन का सनमाषण सकया। उनके शब्दों में एक ऐसी गमाषहट और सत्यता है , जो पाठक के भीतर एक अनकही ऊजाष भर देती है। जीवन की हर मोड़ पर उन्होंने जो धैयष और सववेक सदखाया , वह केवल उनके व् यसित्व की शसि नहीं था , बसल् क वह हमारी पीसढ़ यों के सलए एक सदशासूचक दीपक की तरह है। उनके अनुभव हमें बताते हैं सक साधारण पररवारों में जन् म लेने वाले लोग भी असाधारण प्र े रणा दे सकते हैं — बस उनके भीतर सच्चाई , पररश्म और उद्देश्य स् पष्ट होना चासहए। इस पुस् तक में पापा ने न केवल अपने जीवन की यात्र ा को साझा सकया है , बसल्क हमारे पररवार के सिंस् कारों , बुजुगों की सशिाओिं और उनके अनुभवों को भी अमूल् य धरोहर के रू प में प्र स् तुत सकया है । यह हमें स् मरण कराता है सक पररवार , परिंपरा , मूल् य और अनुभव ही जीवन के वास् तसवक आधारस् तिंभ हैं । इहहीं ने पापा को दृ ़ि बनाया और यही उनकी प्र े रणा का स्र ोत रहे । बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 13 पापा ने अपने सभी छोटे भाई - बहनों को अपने स् नेह और सिंरिण में रखकर उहहें सशसित सकया , सिंवारने का हर प्र यास सकया । आसथसक सीमाएाँ और सिंसाधनों की कमी कभी उनके सिंकल् प के मागस में बाधा नहीं बनी । उहहोंने सादगी , पररश्रम और आत्मसवश्वास को अपना जीवन - मिंत्र बनाया । सेवा काल में भी जब - जब कसठन पररसस् थसतयााँ आई िं , उहहोंने हर बार साहस और ईमानदारी से उनका सामना सकया । यह पुस् तक केवल उनके जीवन की कहानी नहीं है — यह उन सभी लोगों के सलए एक प्र े रक सिंदेश है जो सिंघषों के बीच भी अपने सपनों को जीसवत रखते हैं । पापा ने हमेशा ससखाया सक मुसश् कलों से भागना नहीं चासहए , उहहें अपनाना चासहए , कयों सक वही हमें मजबूत बनाती हैं और हमारी असली पहचान ग़िती हैं । उन्होंने ससखाया सक हर छोटी सफलता के पीछे अनसगनत अनदेखे प्र यास सछपे होते हैं और हर बड़ी चुनौती अपने साथ नई सीख लेकर आती है। यही सीख इिंसान को आत् मबल देती है और आगे बढ़ ने का मागष सदखाती है। मुझे अपार गवस है सक मैं अपने सपता के जीवन की यह प्र े रणादायक यात्रा पाठकों के समि प्र स् तुत कर रही हाँ । मेरा सवश्व ास है सक यह पुस् तक हर उस व् यसि को साहस देगी जो अपने जीवन में कुछ कर सदखाने का सिंकल् प रखता है और पररसस् थसतयों से हार मानने के बजाय उनसे जूझना जानता है । यह पुस् तक केवल एक जीवन की कहानी नहीं , बसल् क एक युग की चेतना है — एक ऐसा सिंदेश जो हर पाठक के रृ दय को स् पशस करेगा । – एकता ससिंह ( पुत्र ी : श्र ी बदन स िं ह चौहान) बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 14 लेखक – बदन ससिंह चौहान लेखक की और से मैं , बदन ससिंह , एक साधारण ग्र ामीण जीवन जीने वाला व् यसि , अपने जीवन की यात्रा को शब्दों में सपरोने का प्र यास कर रहा हाँ । यह आत्मकथा केवल मेरी कहानी नहीं है , बसल् क उस समट्ट ी की गिंध है सजसमें मैं पला - ब़िा - मेरा गााँव अल्लीका , हररयाणा की गोद में बसा एक सािंस् कृसतक धरोहर । १९५० के दशक से लेकर आज तक , मैंने अपने गााँव को बदलते देखा है - रीसत - ररवाजों में , सोच में , जीवनशैली में । इस पुस् तक में मैंने उन परिंपराओिं को सिंजोने की कोसशश की है जो अब धीरे - धीरे धुिंधली होती जा रही हैं । बचपन की स् मृसतयााँ , खेतों की हररयाली , चौपाल की चचासएाँ , त् योहारों की रौनक , और पररवार के साथ सबताए अनमोल पल - ये सब मेरे जीवन के ऐसे रिंग हैं सजहहें मैं पाठकों के सामने रखना चाहता हाँ । मेरे पररवार ने मुझे जो सिंस् कार सदए , जो सिंघषस मैंने देखे और झेले , और जो सीख मैंने जीवन से पाई - वे सब इस आत्मकथा में समासहत हैं । यह प्र यास है उस पी़िी की आवाज बनने का , सजसने सबना शोर सकए अपने जीवन को जीया , और आने वाली पीस़ियों के सलए एक नींव रखी । यह पुस् तक उन सभी को समसपसत है जो अपने गााँव , अपनी जडों और अपने अनुभवों को सहेजना चाहते हैं । आशा है सक मेरी यह यात्रा पाठकों को भावनात्मक रू प से जोड पाएगी और उहहें अपने अतीत की ओर एक बार सिर देखने को प्र े ररत करेगी । जीवन एक यात्रा है - कभी सरल , कभी जसटल , कभी आनिंदमयी , तो कभी सिंघषसपूणस । मैं , बदन ससिंह , इस यात्र ा का एक यात्र ी हाँ , जो अब अपने अनुभवों को शब् दों में ढालने का साहस कर रहा है । यह आत्मकथा मेरे जीवन की कहानी है , लेसकन उससे भी असधक यह उस समट्टी की गाथा है सज सने मुझे ग़ि ा - मेरा गााँव अल्लीका , हररयाणा की सािंस् कृसतक आत् मा से जुडा एक जीविंत स् थान । १९५० के दशक में जब मैं बालक था , तब अल्लीका एक अलग ही रू प में था । कच्चे घर , बैलगासडयााँ , समट्ट ी की सों धी खुशबू , और लोगों के सदलों में बसी आत्मीयता - यही था हमारा जीवन । गााँव की चौपालें सवचार - सवमशस का केंर होती थीं , जहााँ बुजुगों की बातें जीवन का मागसदशसन करती थीं । त् योहारों की रौनक , शादी - ब् याह की परिंपराएाँ , और खेतों में मेहनत का उत्सव - ये सब मेरे जीवन के असभहन सहस्से रहे हैं । बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 15 मेरे पररवार ने मुझे जो सिंस् कार सदए , वे आज भी मेरी सोच और कमस का आधार हैं । सपता की सादगी , मााँ की ममता , भाइयों का साथ , और बच् चों की मुस् कान - इन सबने मुझे जीवन के हर मोड पर सिंबल सदया । मैंने देखा है सक कैसे एक पररवार सिंघषों के बीच भी एकजुट रहकर आगे ब़ि ता है , और कैसे एक गााँव अपने लोगों को प हचान देता है । इस आत् मकथा में मैंने उन अनुभवों को समेटने की कोसशश की है जो समय के साथ धुिंधले होते जा रहे हैं । यह केवल स् मृसतयों का सिंग्र ह नहीं है , बसल्क एक पी़िी की आवाज है - जो आज की पी़ि ी को यह बताना चाहती है सक जीवन केवल भौसतक सुखों से नहीं , बसल्क ररश्तों , मूल् यों और सिंस् कृसत से समृि होता है । मैं यह पुस् तक उन सभी को समसपसत करता हाँ: जो अपने गााँव की समट्ट ी को अब भी अपने रृ दय में बसाए हुए हैं । जो अपने बुजुगों की कहासनयों में जीवन की सच् चाई खोजते हैं । और जो यह समझना चाहते हैं सक एक साधारण जीवन भी असाधारण अनुभवों से भरा होता है । आशा है सक मेरी यह यात्र ा आपको भावनात् मक रू प से छू पाएगी , और आपको अपने अतीत की ओर एक आत्मीय दृ सष्ट से देखने को प्र े ररत करेगी । मेरे जीवन की शुरु आत एक साधारण लेसकन आत् मीय पररवेश में हुई । मेरा जहम हररयाणा के अल्लीका गााँव में हुआ - एक ऐसा गााँव जहााँ जीवन की गसत धीमी थी , लेसकन भावनाएाँ गहरी थीं । १९५० के दशक का वह समय था जब गााँवों में सबजली नहीं थी , रेसडयो एक सवलाससता मानी जाती थी , और मनोरिंजन का सबसे बडा साधन था - एक - दूसरे की सिंगत । अल्लीका की गसलयााँ कच्ची थीं , लेसकन उनमें ररश्तों की पककी डोरें थीं । सुबह - सुबह मुगे की बााँग से सदन शुरू होता था , और खेतों की ओर जाते बैल , हल और सकसान - यह दृ श् य मेरे बचपन का सहस्सा था । गााँव के लोग सीधे - सादे थे , परिंपराओिं में रचे - बसे , और एक - दूसरे के सुख - दुख में सहभागी । हमारा पररवार सिंयुि था — , माता - सपता , बडी भुआ (मेरे सपता जी सक भुआ ̳बीबी धौरा‘ भाई - बहन - सब एक ही छत के नीचे रहते थे । दादी की कहासनयााँ , मााँ की ममता , और सपता की मेहनत ने मुझे जीवन के पहले पाठ प़ि ाए । घर में अनुशासन बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 16 लेखक – बदन ससिंह चौहान था , लेसकन साथ ही अपनापन भी । हर सदस्य का अपना स् थान था , और हर सिंबिंध में एक गहराई । गााँव के स् कूल में मेरी प़ि ाई की शुरु आत हुई । समट्टी के िशस पर बैठकर प़िना , स् लेट पर सलखना , और मास्टर जी की डााँट - ये सब मेरे जीवन के पहले अनुभव थे । सशिा का महत्व तब समझ में नहीं आता था , लेसकन अब महसूस होता है सक वही नीं व थी सजसने मुझे सोचने और समझने की शसि दी । बचपन में खेलों का मतलब था - सगल्ली - डिंडा , कबड्डी , और छुपन - छुपाई । खेतों में दौडना , आम के बागों में चुपके से जाना , और पोखर में नहाना - ये सब मेरे बचपन की अमूल् य स् मृसतयााँ हैं । शरारतें भी होती थीं , लेसकन उनमें मासूसमयत थी । पोखरों के नाम थे – जैसे खोटा, नई की पोखर दीवाले वाली (मिंसदर वाली), कुवेल् की और भी कई थी । गााँव केवल एक भौगोसलक स् थान नहीं होता - वह एक जीविंत सिंस् कृसत , एक सामूसहक चेतना और एक भावनात् मक जुडाव होता है । मेरा गााँव अल्लीका , हररयाणा की धरती पर बसा एक ऐसा ही स् था न है , जहााँ जीवन की सरलता में गहराई सछपी है । १९५० के दशक में हमारे गााँव में हर कायस परिंपराओिं के अनुसार होता था । जहम से लेकर मृत् यु तक , हर पडाव पर समाज की एक भूसमका होती थी । बच्चे के जहम पर छठी और नामकरण सिंस् कार , सववाह में हल्दी , घुड़ चढी , फेरे , और सिदाई - ये सब केवल रस्में नहीं थीं , बसल् क भावनाओिं की असभव् यसि थीं । त् योहारों का सवशेष स् थान था - दीिाली की सिाई और दीपों की रौशनी , होली की रिंग - सबरिंगी मस् ती , ते ej और तीज के त् योहारों में मसहलाओिं की सजधज और गीत , हररयाली तीज में झूले और लोकगीत - ये सब गााँव की आत्मा थे । गााँव की मसहलाएाँ खेतों में काम करते हुए लोकगीत गाती थीं - सजनमें जीवन की पीडा , प्र े म , और आशा की झलक होती थी । रागनी और जाट नृत् य जैसे पारिंपररक प्र दशसन गााँव के मेलों में होते थे , जहााँ पूरा गााँव एक साथ आनिंद मनाता था । गााँव में हर व् यसि एक - दूसरे से जुडा होता था । कोई दुख में हो तो पूरा गााँव साथ खडा होता था । पिंचायत केवल सववाद सुलझाने का स् थान नहीं थी , बसल्क सामासजक सदशा तय करने का केंर थी । चौपाल में बैठकर बुजुगों की बातें सुनना , युवाओिं के सलए सशिा से असधक जीवन का पाठ होता था । खेती गााँव की री़ि थी । बैल , हल , और मेहनत - यही जीवन का आधार था । रबी और खरीफ की िसलें , मौसम के अनुसार काम , और खेतों में सामूसहक श्र म - यह सब बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 17 एकता और पररश्रम का प्र तीक था । मसहलाएाँ घर के कामों के साथ - साथ खेतों में भी सहयोग करती थीं । बाल् यकाल की मासूसमयत से सनकलकर जब मैंने युवावस् था की दहलीज पर कदम रखा , तो जीवन ने एक नया रू प सदखाना शुरू सकया । अब सजम्मेदाररयााँ ब़िने लगी थीं , सपनों ने आकार लेना शुरू सकया था , और सिंघषों ने मुझे मजबूत बनाना शुरू कर सदया था । गााँव के स् कूल से सनकलकर मैंने आगे की प़ि ाई के सलए कस्बे का रु ख सकया । वहााँ का माहौल अलग था - नए लोग , नई सोच , और एक प्र सतस्पधास का वातावरण । प़िाई के साथ - साथ मन में यह भावना भी थी सक अब मुझे अपने पैरों पर खडा होना है । सकताबों के पहनों में मैंने केवल ज्ञ ान नहीं , बसल्क आत्मसवश्वास भी पाया । सशिा पूरी होने के बाद नौकरी की तलाश शुरू हुई । उस समय अवसर सीसमत थे , और साधन भी कम । कई बार सनराशा हाथ लगी , लेसकन सहम्मत नहीं छोडी । खेतों में काम करना , छोटे - मोटे कामों से घर चलाना - ये सब मेरे जीवन के सहस्से बने । मैंने सीखा सक मेहनत का कोई सवकल्प नहीं होता । सिंघषों के बीच भी मन में एक सपना था - अपने पररवार को बेहतर जीवन देना , अपने गााँव में बदलाव लाना , और खुद को एक सम् मानजनक स् थान पर देखना । यही सपना मुझे हर सुबह उठने की प्र े रणा देता था । मैंने देखा सक कैसे छोटे - छोटे प्र यास भी बडे बदलाव ला सकते हैं । युवावस् था में दोस्ती , प्र े म , और ररश्तों की समझ भी गहराने लगी थी । कुछ ररश् ते समय के साथ छूट गए , कुछ आज भी सदल के करीब हैं । मैंने जाना सक जीवन में सबसे बडा सहारा वही लोग होते हैं जो आपके सिंघषों में आपके साथ खडे रहते हैं । बाल् यकाल की मासूसमयत से सनकलकर जब मैंने युवावस्था की दहलीज पर कदम रखा , तो जीवन ने एक नया रू प सदखाना शुरू सकया । अब सजम्मेदाररयााँ ब़िने लगी थीं , सपनों ने आकार लेना शुरू सकया था , और सिंघषों ने मुझे मजबूत बनाना शुरू कर सदया था । गााँव के स् कूल से सनकलकर मैंने आगे की प़ि ाई के सलए कस् बे का रु ख सकया । वहााँ का माहौल अलग था - नए लोग , नई सोच , और एक प्र सतस्पधास का वातावरण । प़िाई के साथ - साथ मन में यह भावना भी थी सक अब मुझे अपने पैरों पर खडा होना है । सकताबों के पहनों में मैंने केवल ज्ञ ान नहीं , बसल्क आत्मसवश्वास भी पाया । सशिा पूरी होने के बाद नौकरी की तलाश शुरू हुई । उस समय अवसर सीसमत थे , और साधन भी कम । कई बार सनराशा हाथ लगी , लेसकन सहम्मत नहीं छोडी । खेतों में बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 18 लेखक – बदन ससिंह चौहान काम करना , छोटे - मोटे कामों से घर चलाना - ये सब मेरे जीवन के सहस्से बने । मैंने सीखा सक मेहनत का कोई सवकल्प नहीं होता । सिंघषों के बीच भी मन में एक सपना था - अपने पररवार को बेहतर जीवन देना , अपने गााँव में बदलाव लाना , और खुद को एक सम् मानजनक स् थान पर देखना । यही सपना मुझे हर सुबह उठने की प्र े रणा देता था । मैंने देखा सक कैसे छोटे - छोटे प्र यास भी बडे बदलाव ला सकते हैं । युवावस् था में दोस् ती , प्र े म , और ररश्तों की समझ भी गहराने लगी थी । कुछ ररश् ते समय के साथ छूट गए , कुछ आज भी सदल के करीब हैं । मैंने जाना सक जीवन में सबसे बडा सहारा वही लोग होते हैं जो आपके सिंघषों में आपके साथ खडे रहते हैं । समय कभी सस्थर नहीं रहता । जैसे - जैसे वषों बीतते गए , मैंने अपने गााँव अल्लीका को बदलते देखा - उसकी गसलयााँ , उसकी सोच , उसकी जीवनशैली । वह गााँव जो कभी बैलगासडयों की आवाज से गूिंजता था , अब मोटरसाइसकलों और मोबाइल िोन की दुसनया में प्र वेश कर चुका है । १९८० के दशक में जब गााँव में पहली बार सबजली आई , तो वह एक उत्सव जैसा था । रेसडयो , पिंखे , और बाद में टीवी - ये सब नई चीजें थीं , सजहहोंने जीवन को एक नई सदशा दी । सिर आया मोबाइल िोन , और अब तो इिंटरनेट ने गााँव को दुसनया से जोड सदया है । चौपाल की चचासएाँ अब व् हाट्सएप पर होती हैं , और खेतों की सनगरानी ड्र ोन से होने लगी है । पहले सशिा सीसमत थी - लडके ही स् कूल जाते थे , और लडसकयााँ घर के कामों में लगी रहती थीं । लेसकन अब लडसकयााँ भी प़ि - सलखकर आगे ब़ि रही हैं । गााँव के बच्चे अब डॉकटर , इिंजीसनयर , और सरकारी अिसर बनने का सपना देख रहे हैं । सोच में खुलापन आया है , लेसकन साथ ही कुछ परिंपराएाँ भी पीछे छूट गई हैं । सिंयुि पररवार अब धीरे - धीरे एकल पररवारों में बदल रहे हैं । बुजुगों की भूसमका सीसमत हो गई है , और युवा अपनी राह खुद चुन रहे हैं । पहले हर सनणसय पिंचायत या पररवार के बुजुगस लेते थे , अब हर व् यसि अपने मोबाइल पर सलाह ढूिंढता है । यह बदलाव आवश्यक है , लेसकन कभी - कभी आत् मीयता की कमी भी महसूस होती है । खेती अब परिंपरागत नहीं रही - ट्र ै कटर , हावेस्टर , और रासायसनक खादों ने उसे बदल सदया है । उत्पादन ब़िा है , लेसकन समट्टी की आत्मा कहीं खो गई है । जीवनशैली में भी बदलाव आया है - अब लोग ब् ािंडेड कपडे पहनते हैं , शहरों की तरह जीते हैं , लेसकन गााँव की सादगी कहीं पीछे छूटती जा रही है । बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस लेखक – बदन ससिंह चौहान Page 19 जब जीवन की यात्र ा एक लिंबा रास् ता तय कर चुकी होती है , तब मन ठहरकर सोचता है - कया पाया , कया खोया , और कया ससखा । आज जब मैं अपने जीवन के पडाव पर खडा हाँ , तो मुझे लगता है सक हर अनुभव , हर सिंघषस , और हर सिंबिंध ने मुझे कुछ न कुछ ससखाया है । जीवन ने ससखाया सक समय कभी एक जैसा नहीं रहता । अच्छे सदन आते हैं , बुरे भी आते हैं - लेसकन जो धैयस रखता है , वही आगे ब़िता है । मैंने सीखा सक हर कसठनाई के पीछे एक सीख सछपी होती है , और हर सिलता के पीछे एक सिंघषस । पररवार , समत्र , और समाज - ये केवल शब्द नहीं हैं , बसल्क जीवन की नींव हैं । मैंने देखा सक जब मनुष् य अकेला होता है , तो वह टूट सकता है ; लेसकन जब उसके पास अपने लोग होते हैं , तो वह हर तूिान से लड सकता है । ररश्तों को समय देना , उहहें समझना और सनभाना - यही जीवन की असली पूाँजी है । गााँव की सादगी ने मुझे ससखाया सक कम में भी बहुत कुछ होता है । सिंतोष वह गुण है जो मन को शािंसत देता है । मैंने देखा सक सजनके पास बहुत कुछ है , वे भी बेचैन हैं ; और सजनके पास थोडा है , वे भी मुस् कुराते हैं । असली सुख भीतर से आता है , बाहर से नहीं । अल् लीका की सिंस् कृसत , परिंपराएाँ , और लोकजीवन ने मुझे मेरी पहचान दी । आधुसनकता आई , बदलाव हुए , लेसकन मैंने अपनी जडों को नहीं छोडा । यही मेरी आत्मा है - मेरी भाषा , मेरा पहनावा , मेरा व् यवहार । मैंने जाना सक जो अपनी जडों से जुडा रहता है , वही जीवन में सस्थर रहता है । आज जब मैं अपने बच् चों और गााँव के युवाओिं को देखता हाँ , तो मन में आशा जागती है । वे आगे ब़ि रहे हैं , नए सपने देख रहे हैं - लेसकन मैं उहहें यही कहना चाहता हाँ सक आगे ब़ि ो , पर अपनी समट्ट ी को मत भूलो । जीवन में ऊ ाँ चाई जरूरी है , लेसकन गहराई उससे भी असधक । जीवन की यात्रा का सार जब मैं अपनी जीवनगाथा को पीछे मुडकर देखता हाँ , तो एक बात स् पष्ट होती है - जीवन केवल घटनाओिं का क्र म नहीं , बसल् क भावनाओिं , अनुभवों और सीखों की एक गहराई है । मैंने एक साधारण गााँव में जहम सलया , एक साधारण पररवार में पला - ब़िा , और एक साधारण जीवन सजया - लेसकन उस साधारणता में जो आसत् मक समृसि थी , वही मेरी सबसे बडी उपलसब्ध है । बदन ससिंह चौहान - एक जीवन सिंघसस Page 20 लेखक – बदन ससिंह चौहान मेरी आत्मकथा कोई महान उपलसब्धयों की गाथा नहीं है , बसल्क उन छोटे - छोटे िणों की कहानी है जो सदल को छू जाते हैं - मााँ की ममता , सपता की मेहनत , गााँव की चौपाल , खेतों की समट्टी , बच् चों की मुस् कान , और समाज की एकता । यही वे धागे हैं सजनसे मेरा जीवन बुना गया । मैंने देखा है सक समय बदलता है , लोग बदलते हैं , सोच बदलती है - लेसकन जो नहीं बदलता , वह है हमारी जडें । मेरी यही कोसशश रही है सक इस पुस् तक के माध् यम से मैं अपनी जडों को सहेज सकूाँ , और उहहें आने वाली पीस़ि यों तक पहुाँचा सकूाँ । मेरे जीवन की सबसे बडी सीख यही रही है - " सादगी में ही गहराई है , और सिंघषष में ही आत् मबल ।" मैं इस आत्मकथा को उन सभी को समसपसत करता हाँ: जो अपने गााँव की समट्ट ी को अब भी अपने रृ दय में बसाए हुए हैं । जो अपने बुजुगों की कहासनयों में जीवन की सच् चाई खोजते हैं । और जो यह समझना चाहते हैं सक एक साधारण जीवन भी असाधारण अनुभवों से भरा होता है । यसद मेरी यह यात्रा सकसी एक व् यसि को भी अपने जीवन को समझने , सहेजने और साँवारने की प्र े रणा दे सके - तो मेरा यह प्र यास सिल होगा । समय एक ऐसा प्र वाह है सजसे कोई रोक नहीं सकता । वह सनरिंतर चलता रहता है - चुपचाप , लेसकन प्र भावशाली ढिंग से । मैंने अपने जीवन में १९५० से लेकर आज तक का समय देखा है , और यह कहना असतशयोसि नहीं होगी सक इन वषों में दुसनया ही बदल गई है । यह सनबिंध उस पररवतसन की पडताल है , जो मैंने अपनी आाँखों से देखा , अपने जीवन में सजया , और अपने गााँव अल्लीका की समट्ट ी में महसूस सकया । 1950 का दशक सादगी का समय था । गााँव में कच्चे मकान , बैलगासडयााँ , समट्टी के चूल् हे , और लालटेन की रोशनी - यही जीवन था । लोग एक - दूसरे के सुख - दुख में सहभागी होते थे , और ररश्तों में आत्मीयता होती थी । आज वही गााँव पकके मकानों , ट्र ै कटरों , मोबाइल टावरों और इिंटरनेट से जुड चुका है । जीवन सुसवधाजनक हुआ है , लेसकन कहीं न कहीं आत्मीयता की कमी भी महसूस होती है । पहले सशिा सीसमत थी - लडसकयााँ स् कूल नहीं जाती थीं , और लडकों की प़िाई भी प्र ाथसमक स् तर तक ही सीसमत रहती थी । आज गााँव के बच्चे डॉकटर , इिंजीसनयर ,