इस Notes म आपका पूरा Syllabus Cover कया गया है | जसे Important Questions और Answers के प म दया गया है | जो खासतौर पर उन लोगो के लए बनाया गया है जनके पास पढ़ने के लए समय कम है, जो बाहर जा कर Classes नह ले सकते | इसम दए गए Questions इतने मह पूण है क इसे पढ़कर कोई भी अ े Marks से पास हो सकता है | इसक Free Classes भी आपको हमारे YouTube Channel पर दी गई ह | यह Notes मेरे ारा लख गय है, इस लए ह दी मा ाओं क गलती के लए मुझे मा कर | All Rights reserved Manish Verma : Written by Manish Verma – Where every problem is solved of University of Delhi The University of Delhi, informally known as Delhi University (DU), is a collegiate public central university located in New Delhi, India. It was founded in 1922 by an Act of the Central Legislative Assembly and is recognized as an Institute of Eminence (I Mr. Manish Verma (M.A Political Scien unreached. I'm an educator of DU SOL channel https://www.youtube.com/c/ManishVermaChannel This channel helps you to Dream, Achieve & Succeed. Successfully Joined us by millions of students. We would like to thanks to the DU SOL Students for the incredible support. We provide B.A & M.A Notes, Important Question with Answer for the final exams, Solved Assignments. And Online Classes. our YouTube channel: Manish Verma ☏ +91 8368259468, 9599279672, 8882104776 ✉ Gmail – contact.manishverma@gmail.com Ⓒ Manish Verma ©THE COPYRIGHT ACT 1957. All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, distributed, or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical methods, without the prior written permission of the publisher, except in the case of brief quotations embodied in critical reviews and certain other noncommercial uses permitted by copyright law. Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ University of Delhi , SOL, NCWEB The University of Delhi, informally known as Delhi University (DU), is a collegiate public central university located in New Delhi, India. It was founded in 1922 by an Act of the Central Legislative Assembly and is recognized as an Institute of Eminence (I oE) by the University Grants Commission (UGC). Mr. Manish Verma (M.A Political Scien ce, B.Ed., DU SOL Teacher) Our aim is to reach the DU SOL students and trying to guide through my YouTube https://www.youtube.com/c/ManishVermaChannel more than 8 years ago. This channel helps you to Dream, Achieve & Succeed. Joined us by millions of students. thanks to the DU SOL Students We provide DU SOL M.A Notes, Important Question with Answer for the final exams, Solved Assignments. And Online Classes. Subscribe to Manish Verma +91 8368259468, 9599279672, 8882104776 contact.manishverma@gmail.com ©THE COPYRIGHT ACT 1957. All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, distributed, or transmitted in any form or by any means, including Photocopying, recording, or other electronic or mechanical methods, without the prior written permission of the publisher, except in the case of brief quotations embodied in critical reviews and certain other noncommercial uses permitted 1 https://joshbadhao.com/ The University of Delhi, informally known as Delhi University (DU), is a collegiate public central university located in New Delhi, India. It was founded in 1922 by an Act of the Central Legislative Assembly and is oE) by the University Grants Commission (UGC). Our aim is to reach the students and trying to guide through my YouTube 8 years ago. ©THE COPYRIGHT ACT 1957. All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, including Photocopying, recording, or other electronic or mechanical methods, without the prior written permission of the publisher, except in the case of brief quotations embodied in critical reviews and certain other noncommercial uses permitted 1 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ आधुनिक भारतीय भाषा न िं दी गद्य : उद्भव और नवकास (न िं दी - ग) अध्ययि - सामग्ीीः इकाई ( 1 - 4) अिुक्रम इकाई - 1 1. ह िं दी गद्य : उद्भव और हवकास 2. ह िं दी गद्य क े हवहिन्न रू प िं का पररचय 3. आत्मकथा , यात्रा साह त्य , रेखाहचत्र , व्य िं ग्य , सिंस्मरण इकाई - 2 1. द बैल िं की कथा (प्रेमचिंद) 2. ब ादुर (अमरकान्त) इकाई - 3 1. साह त्य जनसमू क े हृ दय का हवकास ै (बालक ृ ष्ण िट्ट) 2. सच्ची वीरता (अध्यापक पूणण हसिं ) 3. गेहूँ बनाम गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी) इकाई – 4 1. घीसा (म ादेवी वमाण) 2. वापसी (हवष्णु प्र िाकर) 3. गिंगा स्न ान करने चल गे ? ( हवश्वनाथ हत्रपाठी) 2 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ प्र श्न – गिंगा स्न ाि करिे चलोगे ? क ािी का प्र नतपाघ नलखिए? उतर - प्र नतपाद्य गिंगा स्न ान करने चल गे ? सिंस्मरण हवश्वनाथ हत्रपाठी द्व ारा हलखखत ै । इस सिंस्मरण में हत्रपाठी जी ने आचायण जारीप्रसाद हद्ववेदी क े साथ अपने हवद्याथी - जीवन में हबताये गये हदन िं सह त हद्ववेदी की हदनचयाण , उनकी हवद्वता एविं ज्ञ ान का वणणन हकया ै । लेखक बताते ैं हक हद्ववेजी जी 30 वर्ण की आयु में ी सुहवख्यात हवद्वा न माने जाने लगे थे। परिंतु उन क े व्य खित्व की हवशेर्ता य थी हक वे अन्य हवद्वान िं क े प्र हत पूज्य - िाव रखते थे। सन् 1956 क े आसपास सहदणय िं में , शाम क े समय एक हदन करीब सात बजे हद्ववेदी जी ने लेखक क क ा हक - गिंगा स्न ान करने चल गे ? हद्ववेदी जी , गमी क े हदन िं में किी - किार गिंगा स्न ान क े हलए जा ते थे। साथ में हत्रपाठी जी क िी ले जाते थे। लेहकन सहदणय िं में और व िी शाम क , गिंगा स्न ान की बात क हत्रपाठीजी समझ न ीिं पाए। परन्तु उनक े मन में य सवाल कौिंधा हक गुरुजी सदी क े मौसम में , व िी रात क , गिंगा स्न ान की बात क र े ैं ? हत्रपाठी जी ने देखा हक गुरुजी हवश्वहवद्यालय क े एक छ र पर जैन हवद्वान पिं. सुखलाल क े घर पहिंच गए। गुरु ने अपने हशष्य का पररचय जैन हवद्वान से कराया - ' सिंदेशरासक ' पर काम कर र े ै । पिं. सुखलाल ने हत्रपाठी जी से हवद्वान बनने का गुर बताया - “ हवद्वान बनना चा ते त सिंस्क ृ त पढ़ ल । पढ़ना चा ते त रात में स ने क े प ले कम से कम तीन घिंटे प ले ि जन कर हलया कर ।" लौटते हए रास्ते में हद्ववेदी जी ने अपने हशष्य क क ा - “ गया न गिंगा स्न ान"। हद्ववेदी जी सिंस्क ृ त , प्र ाक ृ त , अपभ्रिंश , बािंग्ला कई िार्ाओिं क े ममणज्ञ हवद्वान थे। वे रचना का एकदम नवीन ए विं साथणक हववेचन करते। कई बार कक्षा में यहद क ई हवद्याथी रचना क े हकसी नवीन अथण की ओर सिंक े त करता त गुरुजी उस हवद्याथी क बडी तारीफ करते। अपने हशष्य िं क पढ़ने क े हलए प्र े ररत करते , हवशेर्कर सिंस्क ृ त िार्ा क । वे हवद्वता की सीमा िी खूब जानते थे। वे अक्सर क ा करते थे “ हवद्वान ने से क्य ा ता ै ! पचास हकताबें पढ़ ले त क ई िी व्य खि हवद्वान जाये। मनुष्य बनने की साधना करना बडी बात ै ।" हद्ववेदी ज िारतीय समाज हवशेर्कर ल कजीवन में रचे - पचे थे , वे ल कगीत िं और सामवेद क ऋचाओिं में समानता (गायन - शैली क ) बताते। हद्व वेदी जी र घिंटे चाय और र पिंद्र हमनट क े अिंतराल पर पान खाते थे। 3 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ कक्षा में हद्ववेदी का पाठ्यक्रम किी समाप्त न ीिं ता था। कक्षा में , वे बडे हवस्तार से पाठ्य हबिंदुओिं की व्य ाख्या करते थे। एक बार ऐसा हआ जब लेखक एम.ए. अिंहतम वर्ण में थे तब हद्ववेदीजी हविागा ध्य क्ष थे। अपनी व्य स्त ताओिं क े चलते कक्षा में वे पाठ्यक्रम पूरा न ीिं करा पाए। ऐसे में गुरुजी ने अहतररि कक्षा ली , पेपर िं की दृ हि से म त्त्व पूणण प्र श् िं पर व्य ाख्यान हदया। परिंतु हजन प्र श् िं क गुरुजी ने तन्मयता से समझा या , उनमें से क ई िी प्र श् परीक्षा में न ीिं आया। हद्ववेदी जी जब घर पर र ते त पढ़ते र ते , चाय पीते र ते , पररणामस्वरूप आूँखें सूज जाती। घर वाल िं क क देते हक क ई आए त क देना - “ बाबूजी घर में न ीिं ैं ।" परिंतु जब क ई ऐसा हवद्याथी आता हजससे उन्हें क ु छ ब लकर हलखवाना ता त वे अपने आदेश क त डते हए स्व यिं आवाज़ लगा देते – ' बाबूजी घर में न ीिं ै , चले जाओ। ' एक हदन जब लेखक हलखने क े हलए पहूँचा त गुरुजी ब ले ' खाना खा लें ' । खाना खाते हए ब ले ' पच्चीस वर्ों से य जना बना र ा हूँ कम खाऊ ूँ - तुम क्य िं कम खा र े ?' खाना खाने क े बाद जब लेखक ने क ा हक पिंहित जी ब हलए। त गुरु जी का जवाब हमला "मैं स ने जा र ा हूँ , तुम अिी त िग जाओ। कल देखेंगे।" हद्ववेदी जी घर से तैयार कर हनकलते लेहकन पान खाते त क ु ताण पान क पीक से खराब जाता। ऐसे में गिंिीर जाते। 1960 में जब काशी ह न् दू हवश्वहवद्यालय ने उन्हें नौकरी से हनकाल हदया त परेशान र ने लगे। हसर पर उूँगहलयाूँ और मूिंछ िं पर क िं घी करने लगे। लेखक क देखकर क ने लगे"नौकरी हमल जाएगी तब देखना हकतना टनन - मन्नन र ता हूँ।" नौकरी से हनकाले जाने पर सब ल ग क टण गए , अपने अहधकार क े हलए लेहकन हद्ववेदी जी क टण न ीिं गए। लेखक ने हद्व वेदी क े स्व िाव क े हवर्य में बताया ै हक वे सुख - दुख और हकसी हववाद की खथथहत में मौन धारण कर लेते थे। िाराज़ वे तीि बातोिं से ोते थे। 1. क ई हकसी मह ला क े चररत्र की हनिंदा करे 2. द प र क े ि जन क े बाद स ते में जगा दे 3. रवीन्द्रनाथ ठाक ु र , मदनम न मालवीय , गाूँधी जी और जवा रलाल ने रू क े बारे में ल्क ी बात करे। 4 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ हत्रपाठी जी क े अनुसार िविूहत क हद्ववेदीजी बडा मानते थे परन्तु कालीदास से क ई बडा क दे त उन्हें बदाणश्त न ीिं ता था। वे साह खत्यक ब स न ीिं करते थे। गुस्से में वे गुस्से का अनुिव कम , थकान का अनुिव अहधक करते थे। वे प्र ाचीन और नवीन द न िं थे। हद्ववेदी जी का नाथ - पिंथ और हनगुणण सिंत साह त्य पर हवशेर् काम था। हद्ववेदी जी मौखखक रू प से हकसी क िी प्र शिंसा कर देते थे। इससे उनक े हमत्र और पररहचत िं क बहत अजीब लगता था। वे उनसे पूछते थे हक वे आचायण नरेन्द्रदेव , स्त ाहलन और ग लवलकर की िी प्र सिंशा क्य िं करते ैं । व चा े उनकी हवचारधारा से हवपरीत ी क्य िं न ता था। इस बारे में उनका क ना था - ' तारीफ कर देने से क्य ा हबगड जाता ै । रचना की समीक्षा थ डे ी ै , िाई मैंने सम्महत दी ै । सम्महत त हमठाई बािंटना ै । ' य ाूँ हद्ववे दी क े हलए एक उदारवादी व्य खित्व का पता चलता ै । वे अच्छे और शािंत मानवीय गुण िं से िरपूर इिंसान थे। हद्ववेदी जी आधुहनक जीवन की जहटलताओिं क झेलते हए िी मध्यकालीन सिंत िं की िािंहत आचरण करते थे। उन्हें असत्य और मानवीयता की शखि अजेय लगती थी। क्य िं हक नौकरशा ी , राजसत्ता क े व्य व ार ने उनक े मन में िय पैदा कर हदया था। यद्यहप बाद में उन्हें बहत सम्मान हमला , उच्चतर पद िी हमले। परिंतु उन्ह िं ने व्य वथथा का द मुिं ापन िी देखा था , हजसे वे िुला न ीिं पाये। वे हबना हलखे - पढ़े र न ीिं पाते थे। उन्ह िं ने अपने हशष्य िं , हमत्र िं , प्र शिंसक िं एविं पाठक िं क बहत क ु छ हदया परन्तु 72 वर्ण की आयु में हद्ववे दी जी हदविंगत गए। इस तर गिंगा स्न ान करने चल गे ? सिंस्मरण से हद्ववेदीजी की हवद्वता , उनक हदनचयाण और उनकी रु हच - अहिरुहच क े साथ - साथ अपने छात्र िं क े साथ उनकी सहृदयता का पता चलता ै । इन सबक े सा थ - साथ इस म ान् व्य खित्व में सिंघर्ण न करने की प्र वृहत्त और उसक े क ें द्र में हनह त कारण िं क िी सिंस्मरणकार ने हववेहचत हकया ै । समग्रत ; य सिंस्मरण म त्त्व पूणण सूचनात्मक और र चकता से ओत - प्र त एक पठनीय सिंस्मरण ै । इसकी िार्ा बहत ी स ज आम ब लचाल की ै । हद्ववे दी जी क े हलए य ाूँ ' गिंगा स्न ान करने की ज बात क ी ै , य ज्ञ ान की गिंगा में िुबकी लगाने से ै । उनकी इसी बात से उनका व्य खित्व म ान त बनता ी ै , उनका साह खत्यक आल चना क े क्ष े त्र में कद और िी ऊ ूँ चा जाता ै । 5 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ प्र श्न – निन्मनलखित वाक्ोिं की व्य ाख्या कीनिए ? (क ) उन्ोिंिे क ा था , " म दोस्त ैं । लेनकि आि तो म दुश्म ि ैं । सच तो य ै नक साथ र ते थे दुश्म ि मािे िाते थे। अलग ैं तब भी दुश्म ि ैं । दुश्म िी का मा ौल िैसे सच्च ाई ै , बानक सब झू ठ ै । दुश्म िी का मा ौल! आ ! क् ा य मा ौल बदल ि ी िं सकता , क् ा म कभी एक दूसरे को प्य ार ि ी िं कर सकते , क् ा इन्साि ।" सिंदभभ - प्र स्त ु त पिंखियाूँ हवष्णु प्र िाकर क े प्र हसद्ध एकािंक ' वापसी ' से उद्धृत ै । प्र स्त ु त एकाक जीवन मूल्य की दृ हि से धमण , मज ब , रािर और िार् ा क े कारण हकए जाने वाले हविाजन की मूलिूत मान्यता पर जबदणस्त प्र ार करता ै । ऐसे हविाजन हविाहजत ल ग िं क े मन से उनकी जन्मिूहम , उनक े गाूँव , वतन का म न ीिं हमटा पाते ैं । जब किी ऐसे ल ग अपने मूल थथान पर आते ैं तब य म उनक े मन में प्र बल वेग से फ ू ट पडता ै । असगर जैसे ी िारत - िूहम पर पाूँव रखता ै उसे पुराने खण्ड र , मीनार , मखिदें आहद याद आने लगती ैं । पाहकस्तान जाते समय चौधरी सा ब ने उससे क ा था हक वे द स्त ैं द स्त ी र ें गे। प्र स्त ु त पिंखिय िं में चौधरी क देखते ी असगर क े मानहसक द्व न्द्र क व्य ि हकया गया ै । व्य ाख्या - असगर स चता ैं हक हजस हदन उसने ह िं दुस्तान क छ डा था तब चौधरी और सारे गाूँव क े ल ग हमलकर र ये थे और उन्ह िं ने य क ा था हक म द स्त ैं । हकन्तु आज युद्ध क े कारण द देश िं क े बीच , व ाूँ क े हनवाहसय िं क े बीच उत्पन्न ने वाली दरार ने इन्सान क अन्दरूनी रू प से त ड हदया ै । आज म द स्त न ीिं एक दूसरे क े दुश्मन ैं । आज साम्प्रदाहयकता का हवर् समाज की जड िं में समा चुका ै । मारे हदल िं में एक प्र कार का िय और अहवश्वास घर कर गया ै । आज ऐसे लगता ै जैसे व्य खि - व्य खि क े बीच हसफ ण दुश्मनी का सम्बन्ध ी शेर् र गया ै और ज सत्य ै व सब झूठ ै । असगर स चता ै हक क्य ा इस साम्प्रदाहयकता की िावना क हमटाया न ीिं जा सकता। क्य ा ऐसा न ीिं सकता हक सिी अपनी वैमनस्य छ डकर एक दूसरे से प्र े म से र ें । क्य ा म एक दूसरे से प्य ार न ीिं कर सकते ? इस प्र कार असगर अपने बचपन क े साहथय िं क प चानकर बहत त्र स्त ै । अ सगर क े अन्तद्वणन्द्व क इन पिंखिय िं में उिारा गया ै । 6 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ नवशेष - 1. असगर क े अद्वणन्द्व क इन पिंखिय िं में उिारा गया ै । 2. प्र स्त ु त पिंखिय िं का स्व र मानवतावादी और गाूँधीवादी ै । 3. िार्ा सरल एविं पात्रानुक ू ल ै । ( ि ) रात का काला ------------------- में रिंग नदया । सन्दभभ - प्र स्त ु त गद्यािंश मारी पाठ्य - पुस्तक ' गद्य गररमा ' में ' रामवृक्ष बेनीपुरी ' द्व ारा हलखखत हनबन्ध ' गेहूँ बना म गुलाब ' नामक शीर्णक से हलया गया ै | प्र सिंग - प्र स्त ु त अवतरण में लेखक ने स्प ि हकया ै हक मनुष्य अपने जीवन में क े वल शारीररक आवश्यकताओिं की पूहतण ी न ीिं चा ता , वरन् व मानहसक , बौखद्धक और आखत्मक आवश्यकताओिं की सन्तुहि क े हलए िी प्र यास करता ै । व्य ाख्या - सवणप्रथम मानव अपनी िूख हमटाने क े हलए प्र यासरत हआ । हजस प्र कार काली रात क े व्य तीत जाने क े बाद मनुष्य प्र ात:काल की लाहलमा और सौन्दयण क े प्र हत आकहर्णत ता ै , उसी प्र कार पेट की आग बुझ जाने क े बाद व प्र क ृ हत क े अनुपम सौन्दयण की ओर उन्मुख हआ । जब उसने उर्ा की अलौहकक लाहलमा सूयण क े हदव्य प्र काश और मधुररम ररयाली क े अनेक दृ श्य अपने नेत्र िं से हन ारे त व उल्लास और प्र सन्नता से उछल पडा | आकाश में गरजती - चमकती श्य ामल घटाओिं क देखकर आहदमानव क े वल इसीहलए प्र सन्न न ीिं हआ हक ये घटाएूँ बरसकर तथा खेत िं में अन्न उगाकर उसक े पेट क िर देगी , वरन् प्र क ृ हत क े अहद्वतीय और अनुपम सौन्दयण से आकहर्णत कर ी उसका मनरूपी मयुर नाचने लगा । इसी प्र कार आकाश में सतरिंगे इन्द्रधनुर् क े हबिंब क हन ारकर िी मानव - मन उल्लास से िर गया । तात्पयण य ै हक मनुष्य ने क े वल अपनी िूख ी न ीिं हम टाई , वरन् उसने प्र क ृ हत क े सौन्दयण क िी हन ारा । उसने क े वल शारीररक तृखप्त ी न ीिं प्र ाप्त की , वरन् उसका मन िी तृप्त हआ 7 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ नवशेष (1) प्र स्त ु त पिंखिय िं में मनुष्य क े सौन्दयण ब ध क एक अलौहकक गुण क े रू प में हचहत्रत हकया गया ैं (2) य सच ै हक िूख या कि की अवथथा में सौन्दयण ब ध का उल्लास प्र िाहवत न ीिं करता , परन्तु जब पेट िरा ता ै त व्य खि हन:स्वाथण िाव से ओर स्व ािाहवक रू प से सौन्दयण की ओर आकहर्णत ता ैं । (3) िार्ाआलिंकाररक (4) शैलीहवचारात्मक एविं हवश्लेर्णात्मक (5) वाक्य - हवन्यास - सुगहठत (6) शब्द - चयन - हवर्य वस्तु क े अ नु रू प प्र श्न – वापसी क ािी का सारािंश की व्य ाख्या कीनिए ? उतर - वापसी क ािी का सारािंश गजाधर बाबू पैतीस वर्ों तक रेल की नौकरी करक े अवकाश प्र ाप्त हए थे। वे अपने घर वापस लौटने की तैयारी में लगे हए थे। सारा सामान बिंध चुका था। उस समय उनक े मन में ज ाूँ एक ओर अपने पररवार क े बीच जाने की उत्सुकता थी व ी दूसरी ओर अपने पड हसय िं , कमणचाररय िं का स्न े उन्हें हवर्ाद से िर दे र ा था। गणेशी गजाधर बाबू का बडा ख्य ाल रखता था। व उनक े हलए बेसन का लि्ि ू बना हदया था। सािंसाररक दृ हि से उनका जीवन सफल था। उन्ह िं ने श र में एक बडा मकान बनवा हलया थे। बडे लडक े अमर और क्र ािंहत की शादी कर चुक े थे। द बच्चे ऊ ूँ ची कक्षाओिं में पढ़ र े थे। बच्च िं की पढ़ाई क े कारण पत्नी अहधकतर श र में र ती थी और उन्हें अक े ला र ना पडता था। उन्हें इस बात की अत्यिंत खुशी थी हक अब वे अपने पररवार क े साथ सुख से र सक ें गे। गजाधर बाबू स्न े ी व्य खि थे। अपने आस - पास क े ल ग िं से उनका मधुर व्य व ार था। बीच - बीच में जब पररवार उनक े साथ र ता था त व समय उनक े हलए असीम सुख का ता था। छुट्टी से लौटकर बच्च िं का ूँ सना - ब लना , पत्नी का द प र में देर तक उनक े खाने क े हलए प्र तीक्षा करना और उसका सजल मुस्कान सब क ु छ याद करते हए उनकी उदासी और बढ़ जाती थी। बह त सारे अरमान हलए गजाधर बाबू अपने घर पहिंचे। इतवार का हदन था। गजाधर बाबू क े सिी बच्चे इकठ्ठा कर घर में नाश्ता कर र े थे। बच्च िं की िं सी सुनकर वे प्र सन्न हए और हबना खािंसे अन्दर चले गए। हपता क देखते ी नरेंद चुपचाप बैठ गया , बह 8 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ ने झट से माथा ढक हलया और ब सिंती ने अपनी ूँ सी क दबाने की चेिा की। उन्ह िं ने नरेंद से पुछा क्य ा र ा था पर नरेंद्र ऐसा चुप गया जैसे गजाधर बाबू का व ािं आना अच्छा न लगा । बच्च िं क े इस व्य व ार से वे दुखी हए। उन्ह िं ने बसिंती से अपने हलए चाय पीने क े हलए बा र ी माूँगा। अब वे घर में प्र ायः बैठक में ी र ते थे क्य िं हक मकान छ टा था। गजाधर बाबू घर की ाल चाल देखकर पत्नी क घर खचण कम करने की सला दी परन्तु पत्नी द्व ारा उन्हें स ानुिूहत न ीिं हमली। उन्हें अब य म सूस ने लगा हक जैसे पररवार की सिी परेशाहनय िं की व ी हजम्मेदार ैं । गजाधर बाबू क े ह दायत पर बह खाना बनाने गयी पर चौका खुला छ ड दी हजससे हबल्ली ने दाल हगरा दी। बसिंती ने खाना त बनाया पर ऐसा हजसे क ई खा न सक े । नरेंद्र ने खाना न ीिं खाया और अपनी खीज गजाधर बाबू पर उतारने लगा। शीला क े घर न जाने की मना ी पर बसिंती उनसे रु ि गयी और अब उनक े सामने जाने से कतराने लगी। पुत्री क े इस व्य व ार से उनकी आत्मा दुखी उठी। उन्हें इस बात से और आघात पहूँचा हक अमर अब अलग ने का स च र ा ै क्य िं हक अब अमर क े द स्त िं की म ह़िल न ीिं जैम पाती थी। दूसरे हदन जब वे घूमकर आये त देखा हक बैठक से उनकी खाट उठाकर छ टी क ठरी में रख दी गयी ै । अब गजाधर बाबू क ऐसा ए सास ने लगा जैसे हक पररवार में उनकी क ई उपय हगता न ीिं ै । इस घटना क े बाद वे चुपचाप र ने लगे हकन्तु हकसी ने उनकी चुप्पी का कारण न ीिं पूछा। उन्हें अब अपनी पत्नी क े व्य व ार में स्व ाथणपरता की बू आने लगी। उन्हें अब पररवार क े ह ताथण हकसी कायण क े हलए उत्सा न र ा। इसी बीच गजाधर बाबू ने एक हदन अपने घरेलू नौकर क काम से टा हदया। इसे सुनकर नरेंद्र आग बबूला गया। य सब देखकर उनका मन हवचहलत उठा और उन्ह िं ने मन ी मन तय हकया हक अब उन्हें य ाूँ न ीिं र ना ै । अवकाश प्र ाखप्त क े बाद रामजी हमल वाल िं ने उन्हें अपनी चीनी की हमल में नौकरी का प्र स्त ाव हदया था लेहकन उन्ह िं ने पररवार क े साथ र ने की कल्पना क े कारण स्व ीकार न ीिं हकया था। अब उन्ह िं ने उसक े हलए रजामिंदी िेज दी। उन्ह िं ने पत्नी से क ा हक क्य ा व िी उनक े साथ च लेगी , परन्तु पत्नी ने इनकार कर हदया। गजाधर बाबू पाररवाररक सुख से विंहचत और हनराश कर ररक्शे पर बैठ गए। उनका हबस्तर और असबाब लाद हदया गया। उन्ह िं ने एक नज़र पररवार पर िाली और इतने में ररक्शा चल पडा। पररवार क े सिी ल ग प्र सन्न हए और गजाधर बाबू की चारपाई घर से बा र हनकाल दी गयी। 9 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ प्र श्न - घीसा पाठ का मूल सिंवेदिा कीनिए ? उतर - मूल - सिंवेदिा म ादेवी वमाण द्व ारा रहचत ' घ सा ' अत्यिंत ममणस्पशी रेखाहचत्र ै हजसमें गिंगा पार झूसी क े खिंि र और उसक े नजदीक क े गाूँव िं क े प्र हत म ादेवी वमाण का आकर्णण बना र ता था। गाूँव में घूमते - हफरते देखते हए लेखखका का ध्य ान जाता ै हक व ाूँ क े दहलत एविं हनधणन बच्च िं क पढ़ाना चाह ए। म ादेवी वमाण सप्ता में एक हदन नदी क े पार बच्च िं क पढ़ाने क े हलए जाने लगी। उन्हीिं बच्च िं में घीसा िी था। घ सा एक हवधवा स्त्र ी का बेटा था। घीसा क े पैदा ने से प ले ी हपता क ै जे से मृत्यु चुकी थी। घीसा क माूँ अपने आस - पड स में लीपा - प ती का काम करक े अपना और अपने बेटे का जीवन - हनवाण करती थी। घर में क ई सदस्य न ने क े कारण माूँ काम क े समय घीसा क िी अपने साथ ले जाया करती थी व ाूँ घ सा जमीन पर हघसट - हघसट कर माूँ क े चार िं और घूमता - हफरता र ता था। इसी कारण उसका नाम घीसा पड गया था। घीसा क े जन्म क े समय माूँ क समाज की अनचा ी बात िं का सामना करना पडा। इसका प्र िाव घीसा क े स्क ू ल में दाखखला क े समय देखने क हमला अथाणत् गाूँववाल िं का हवर ध घीसा और माूँ क झेलना पडा। इसका पररणाम य हआ हक म ादेवी वमाण ने घ सा क स्क ू ल में िती हकया और घीसा क पढ़ाने का क्र म िी रखा। म ादेवी गाूँव क े बच्च िं क म ीने में क े वल चार हदन ी पढ़ा पाती थीिं अन्य हदन िं में व अपने कायों में व्य स्त र ती थीिं। घीसा का पढ़ाई क े प्र हत लगाव , सादगी और गुरु क े प्र हत िखि - िावना क देख म ादेवी का मन हपघलने लगा था। घीसा की आज्ञाकारी प्र वृहत उन्हें बे द आकहर्णत करती र ी। म ादेवी वमाण ने इस रेखाहचत्र में अनेक सिंदिो द्व ारा घीसा क े चररत्र की हवशेर्ताओिं का पक्ष रखा ै । व अपनी बीमारी क े चलते पाठशाला से क ु छ म ीन िं की छुट्टी लेकर जा र ी ती ैं त घीसा उन्हें उप ारस्वरूप तरबूज िेंट में देता ै । इस उप ार क जुटाने में घ सा क अपने नये क ु रते का त्य ाग िी करना पडता ै । लेखखका क जब इस बात का पता चलता ै त व द्र हवत जाती ैं । अपनी बीमारी क े तुरिंत ठीक ते म ादेवी वमाण जब वापस लौटती ै त देखती ैं हक घीसा अब इस सिंसार में न ीिं ै अथाणत् उसकी मृत्यु चुकी ै । 10 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ प्र श्न - रामवृक्ष बेिीपुरी का िीवि - पररचय देते हु ए इिकी क ृ नतयोिं का उल्लेि कीनिए उत्तर - लेिक पररचय प्र हसद्ध साह त्य कार रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म हब ार क े हजला मुजफ्फरपुर क े बेनीपुर ' नामक गाूँव में 23 हदसम्बर , सन् 1899 ई ० क हआ था। इनक े हपता फ ू लवन्त हसिं एक साधारण क ृ र् क थे ।अल्पायु में ी रामवृक्ष माता - हपता क े वात्सल्य से विंहचत गए थे। इनका पालन - प र् ण इनकी मौसी की छत्र - छाया में हआ। इनकी प्र ारखिक हशक्षा इनकी नहन ाल में हई ।ये गाूँधी जी क े अस य ग आन्द लन से बहत प्र िाहवत हए ; अत: मैहटरक की परीक्षा उत्तीणण करने क े बाद पढ़ाई छ डकर स्व तन्त्रता सिंग्राम में क ू द पडे । स्व ाध्याय क े बल पर ी इन्ह िं ने ह न्द ी साह त्य की ' हवशारद ' परीक्षा उत्तीणण की। रािर - सेवा क े साथ ी साह त्य क े इस पुजारी ने स्व ाध्याय व साह त्य सृजन का क्र म जारी रखा। अनेक बार इनक जेल यातना िी स न करनी पडी। इन्ह िं ने अपने हनबन्ध िं क े माध्यम से जनमानस में देश - िखि की िावना जाग्रत की। मात्र पन्द्र वर्ण की अवथथा में ये पत्र - पहत्रका ओिं क े सम्पादन में य गदान करने लगे थे। इसी से साह त्य क े प्र हत प्र े म इनक े मन में उत्पन्न हआ। इनक े साह त्य में इनक े उच्च हवचार िं एविं ग न अनुिूहतय िं की स्प ि झलक हदखाई देती ै । इन्ह िं ने हवशेर् रू प से हनबन्ध व रेखाहचत्र हवधा क े क्ष े त्र में अपना म त्व पूणण य ग दान हदया । स्व तन्त्रता व साह त्य का य प्र े मी 9 हसतम्बर , सन् 1968 ई ० में हचर - हनद्रा में हवलीन गया। क ृ नतयााँ - बहमुखी प्र हतिा से सम्पन्न बेनीपुरी जी की प्र मुख क ृ हतयाूँ हनम्नहलखखत ैं - हनबन्ध और रेखाहचत्र - गेहूँ और गुलाब , वन्दे वाणी हवनायकौ , मशाल , ( हनबन्ध) मा टी की मूरतें , लाल तारा रेखाहचत्र) सिंस्मरण - जिंजीरें और दीवारें , मील क े पत्थर आहद िावपूणण सिंस्मरण ैं । िाटक - सीता की माूँ , अम्बपाली , रामराज्य आहद रािरप्र े म क उजागर करने वाले नाटक ैं । उपन्यास और क ािी - ' पहतत िं क े देश में ', उपन्यास और हचता क े फ ू ल ' क ानी - सिंग्र ैं । िीविी - कार्ल्ण माक्सण , जयप्रकाश नारायण , म ाराणा प्र ताप हसिं आहद जीवहनयाूँ ैं । यात्रावृत्त - ' पैर िं में पिंख बाूँधकर ' तथा ' उडते चलें ' इनक े लहलत यात्रा - वृत्तान्त िं क े सिंग्र ैं । 11 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ आलोचिा - ' हवद्यापहत पदावली ' और ' हब ारी सतसई की सुब ध टीका ' इनकी आल चनात्मक प्र हतिा का पररचय देते ैं | पत्र - पनत्रकाएाँ (सम्पादि) - तरुण िारती , युवक , ह मालय , नई धारा , क ै दी , जनता , य गी , बालक , हकसान हमत्र , चुन्नू - मुन्नू , तूफान , कमणवीर आहद अनेक पत्र - पहत्रकाओिं का इन्ह िं ने बडी क ु शलतापूवणक सम्पादन हकया था | प्र श्न - रामवृक्ष बेिीपुरी की भाषा - शैली पर प्र काश डानलए उत्तर - भाषा - शैली - बेनीपुरी जी ने प्र ाय: व्य ाव ाररक िार्ा का प्र य ग हकया ै । सरलता , सुब धता और सजीवता से युि बेनीपुरी जी की िार्ा का अपना अलग ी प्र िाव ै । इनका शब्द - चयन चमत्काररक ै । िाव , प्र सिंग व हवर्य क े अनुरूपये तत्सम , तद्भव , देशज , उदूण , फारसी आहद शब्द िं का ऐसा सटीक प्र य ग करते ैं हक पाठक आश्चयणचहकत उठता ै । इनकी इस हवशेर्ता क े कारण इन्हें शब्द िं का जादूगर क ा जाता ै । बेनीपुरी जी ने अपनी रचनाओिं में मु ावर िं व क ावत िं का खुलकर प्र य ग हकया ै ।इनक े द्व ारा प्र युि िार्ा में लाक्षहणकता , व्य िं ग्य ात्मकता , प्र तीकात्मकता और अलिंकाररकता हवद्यमान ै । इनक े छ टे - छ टे वाक्य ग री अथण - व्य िं जना क े कारण बडी तीखी च ट करते ैं । बेनीपुरी जी की रचनाओिं में में हवर्य क े अनुरूप हवहवध प्र कार की शैहलय िं क े दशणन ते ैं । हकसी वस्तु अथवा घटना का वणणन करते समय बेनीपुरी जी ने वणणनात्मक शैली का प्र य ग हकया ै । जीवनी , क ानी , यात्रावृत्त , हनबन्ध िं और सिंस्मरण िं में इनकी इसी शैली क े दशणन ते ैं । बेनीपुरी जी की रचनाओिं की प्र धा न शैली िावात्मक ै । इसमें िाव िं का प्र बल वेग , हृ दयस्पशी माहमणकता और अलिंकाररक सौन्दयण हवद्यमान ै । रेखाहचत्र िं में बेनीपुरी जी ने शब्दहचत्रा त्म क शैली का प्र य ग हकया ै । क ाहनय िं और लहलत हनबन्ध िं में िी क ीिं - क ीिं इस शैली क े दशणन जाते ैं ।। बेनीपुरी जी सीधे - सीधे बात न क कर उसे प्र ायः प्र तीक िं क े माध्यम से ी व्य ि करते ैं ; अत: इनक े हनबन्ध िं में प्र तीकात्मक शैली का प्र य ग अहधक हआ ै गेहूँ बनाम गुलाब ', ' नीिंव की ईिंट ' आहद लहलत हनबन्ध इनक े द्व ारा प्र युि प्र तीकात्मक शैली क े सुन्दर उदा रण ैं । शैली क े इन प्र मुख रू प िं क े अहतररि बेनीपुरी जी ने हब ारी और हवद्यापहत की समीक्षाओिं में आल चनात्मक शैली अपनाई ै ।इनकी रचनाओिं में िायरी शैली , सिंवाद शैली , सूखि शैली आहद क े दशणन िी ते ैं । 12 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ प्र श्न – सच्ची वीरता क ािी का सारािंश को नलखिए ? उतर - सच्ची वीरता , सरदार पूणभ नसिं , सच्ची वीरता हनबिंध का सारािंश , सच्ची वीरता क्य ा ै , सच्चे वीर पुरुर् की हवशेर्ताएिं , मिंसूर की वीरता , म ाराज रणजीत हसिं ने अपने फौज क क ै से उत्साह त हकया , वीरता हकस रू प में प्र कट ती ै , सच्ची वीरता हनबिंध से क्य ा प्र े रणा हमलती ै , सच्ची । वीरता हनबिंध क े प्र हतपाद्य , सच्ची वीरता हनबिंध क े लेखक सरदार पूणण हसिं का जीवन पररचय , सरदार पूणण । हसिं जापान क्य िं गये , क्य ा सरदार पूणण हसिं सिंन्यासी बन गये थे , सरदार पूणण हसिं हकस म ात्मा से प्र िाहवत थे। सच्ची वीरता निबिंध का सारािंश , सच्ची वीरता हनबिंध क े लेखक सरदार पूणण हसिं ै । इन्ह िं ने इ स प्र े रणा दायक हनबिंध में सच्चे वीर और सच्ची वीरता का बहत सुिंदर वणणन हकया ै । वे हलखते ैं - सच्चे वीर पुरुर् धीर , गिंिीर और आजाद ते ैं । उनक े मन की गिंिीरता और शािंहत समुद्र की तर हवशाल और ग री तथा आकाश की तर खथथर और अचल ती ै । लेहकन जब य शेर गरजते ैं तब सहदय िं तक उनकी द ाड सुनाई देती ै । और दूसरे सिी की आवाजें बिंद जाती ै । य ािं लेखक सच्चे वीर पुरुर् की हवशेर्ताएिं बताते हए में वीरता क े साथ अपने कतणव्य पालन की प्र े रणा दी ै । सच्चे वीर पुरुर् कहठनाइय िं और सिंकट िं से तहनक िी हवचहलत न ीिं ते। वे शािंत और दृ ढ़ सिंकल्प लेकर अपने काम में तल्लीन र ते ैं । हफर क्य ा ै ? वे आकाश में सूयण की तर तेज चमकते ैं । सत्वगुण क े समुद्र में हजनका अिंतःकरण हनमग्न गया , वे म ात्मा गये। व ीिं वीर और साधू क े जाते ैं । उनक े हलए क ु छ िी अगम्य न ीिं ै । वे ज ािं चा े , जा सकते ैं । व ीिं सबक े मन पर राज करते ैं । व ीिं सबक े मन मीत िी बनते ैं । लेखक ने एक क ानी द्व ारा अपनी बात और स्प ि की ै । एक बार एक बागी गुलाम और एक बादशा की बातचीत ई। व गुलाम क ै दी हदल से आजाद था। व गुलाम क ै दी से बाद शा ने क ा , " मैं तुमक अिी जान से मार िालूिंगा। तुम क्य ा कर सकते । गुलाम ब ला , ािं , मैं फािंसी पर चढ जाऊ िं गा पर तुम्हारा हतरस्कार तब िी कर सकता हिं। इस गुलाम ने बादशा की द हदखला दी। बस इतने ी ज र और इतनी 13 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ ी तल्खी पर य झूठे राजा मारपीट कर कायर ल ग िं क िराते ैं । ल ग शरीर क अपने जीवन का क ें द्र समझते ैं । इसहलए ज ािं हकसी ने उनक े शरीर पर जरा ज र से ाथ लगाया व ीिं वे िर क े मारे अधमरे जाते ैं । क े वल शरीर रक्षा क े हनहमत्त य ल ग इन राजाओिं की ऊपरी मन से पूजा करते ैं । सच्चे वीर अपने प्र े म क े ज र से ल ग िं क े हदल िं क सदा क े हलए बािंध देते ैं । मिंसूर ने अपनी मौज में क ा , मैं खुदा हिं। दुहनयावी बादशा ने क ा , य काफीर ै । मगर मिंसूर ने अपनी कलाम बिंद न ीिं हकया। पत्थर मार - मार कर दुहनया ने उसक े शरीर की बुरी दशा कर दी। परन्तु , उस मदण क े मुिं से र बार य ी शब्द हनकला अन लक अथाणत मैं ी ब्र ह्म हिं। मिंसूर का सूली पर चढ़ना उसक े हलए हसफ ण एक खेल था। म ाराजा रणजीत हसिं ने ़ि ौज से क ा , अटक क े पार जाओ। अटक चढ़ी हई थी और ियिंकर ल रें उठ र ी थी। फौज ने क ु छ उत्सा प्र कट न ीिं हकया त उस वीर क ज श आ गया। म ाराजा ने अपना घ डा दररया में िाल हदया। क ा जाता ै हक अटक सूख गई और सब पार हनकल गए। देखखए उत्सा और ज श का कमाल। सच्ची वीरता क े सामने उफनती दररया क ै से मागण बदल देती ै । इसी तर जब श्र ीराम ने समुद्र क े ऊपर अपना बाण तान हदया त समुद्र िी त्र ाह - त्र ाह करते हए ाथ ज डकर मागण दे हदया था। एक बार की बात ै । ला ख आदमी मरने मरने क तैयार थे। धुआिंधार ग हलयािं बरस र ी थी। आल्प्स पवणत क े प ाड िं पर फौज ने ज्य िं ह चढ़ना आरिंि हकया , उनकी ह म्म त टूट गई। वीर नेप हलयन क ज श आ गया। उसने क ा , आल्प्स ै ी न ीिं। फौज क हनश्चय गया हक आल्प्स ै ी न ीिं। और सिी प ाड क े पार गये। एक िेड चराने वाली और सत्वगुण में ि ू बी युवती कन्या क े हदल में ज श आते ी फ् ािंस एक िारी हशकस्त से बच गया। य बात जग प्र हसद्ध ै । सच्ची वीरता की अनभव्यखि वीरता की अहिव्यखि कई प्र कार से ती ै । किी वीरता की अहिव्यखि लडने मरने में , खून ब ाने में , तलवार क े सामने जान गवाने में ती ै त किी जीवन क े मूल तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध की तर । जैसे बुद्ध जैसे राजा ने राजपाट से हवरि कर तपस्या क े हलए हनकल जाने का ह म्म त हदखाया। वीरता एक प्र कार की अिंतःप्रेरणा ै । जब किी इसका हवकास हआ एक नया कमाल नजर आया। वीरता मेशा 14 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ हनराली और नई ती ै । नयापन िी वीरता का एक खास रिंग ै हजसे देखकर ल ग चहकत जाते ैं । हफर उस वीर पुरुर् क े लाख िं अनुयाई जाते ैं । उसका मन और हवचार सबक े मन और हवचार बन जाते ैं । लेखक सरदार पूणण हसिं क ते ैं , वीर िं क े बना ने का क ई कारखाना न ीिं ता। वे त देवदार वृक्ष की तर जीवन क े जिंगल में खुद ब खुद जन्मे और हवकहसत ते ैं । उन्हें क ई देखिाल न ीिं करता , क ई पानी न ीिं हपलाता। वे एक हदन तैयार कर दुहनया क े सामने खडे जाते ैं । वीर पुरुर् का हनश्चय अटल ता ै । उनका शरी र साधन मात्र ता ै । और य साधन समस्त शखिय िं का ििंिार ता ै । क ु दरत का य अनम ल उप ार ह ल न ीिं सकता। सूयण और चिंद्रमा ह ल जाय परन्तु उनका अटल हनश्चय न ह लता ै । व वीर ी क्य ा ज टीन क े बतणन की तर झट से गमण गया और झट से ठिंिा जाए। अथाणत् परर खथथहतय िं से हवचहलत जाय , व सच्चा वीर पुरुर् न ीिं ता। वीर र पररखथथहत में अचल और अहिग र ते ैं । वीर िं की हवशेर्ताएिं सुनकर म सब क े अन्दर िी वीरता का ज श आता ै परन्तु व थथायी न ीिं ता , आता ै और क ु छ ी हदन िं में चला िी जाता ै । में टीन की तर न ीिं बखल्क मजबूत और म टे चट्टान की तर अटल और अहिग बनकर र ना चाह ए। तिी म वीरता क े साथ जीवन का सच्चा आनिंद ले सकते ैं । प्र श्न - वेदोिं क े रचिा काल में आयों का समाि क ै सा था ? उत्तर - वेद प्र ाचीनतम साह त्य ै । आयण हनष्कपट और उदार थे। उनक े इस हनष्कपट व्य व ार और उदारता क म वेद िं में िी देखते ैं । आयण न त मनु और याज्ञवल्क्य जैसे ऋहर्य िं की िाूँहत समाज की उन्नहत - अवनहत क हचिंता में लीन र ते थे , न कणाद , की तर शास्त्रीय हचन्तन में लीन र ते थे और न ी काहलदास , िविूहत और र् ण जैसे सिंस्क ृ त क े म ान रचनाकार िं की तर हचत्र ण करते थे। आयण सीधे सादे थे , इसहलए उन्ह िं ने सूयण क े तेज से अहििूत उसे देवता मान हलया , पहक्षय िं क े कलरव क प्र िात वन्दना स्व ीकार हकया , वायु की प्र बलता क अनुिव कर उसे िी देवता की श्र े णी में रख हदया। उस समय राजनीहतक तौर पर देश शान्त था इसहलए वेद िं में राजनीहत की क ु हटलता न ीिं आई। 15 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ क ृ नत्रमता (बिावट) हकसी िी क्ष े त्र में न ीिं थी। धमण में िी उदारता थी। धमण में ज आज सिंकीणणता और अ िं कार ै व उस समय न ीिं था। ' हसधाई , ि लापन और उदार िाव ' आयों क े समाज और साह त्य की क े न्द्र ीिूत प्र वृहत्त ै । प्र श्न - उपनिषदोिं औ र स्म ृ नतयोिं का िन्म क ै से हु आ ? उत्तर - प्र ाक ृ हतक पदाथों क उनक े मौहलक रू प में देखकर , उनक शखि क अनुिव कर आयों ने ईश्वर की पररकल्पना क , उन्हें साह त्य में व्य ि हकया ज उपहनर्द् क लाए। समाज क े हवस्तार क े साथ ी ल ग िं क े व्य व ार में पररवतणन और अलगाव आया। हकन्तु एक सूत्र में आबद्ध कर िी िावनात्मक स्त र पर हबना हकसी क ठेस पहूँचाए हनयम बनाए गए। ये हनयम हजन पुस्तक िं में ैं वे स्म ृ हत साह त्य क े नाम से जाने जाते ैं । मनु , अहत्र , ारीत , याज्ञवल्क्य आहद ने अपनी पुस्तक िं में हवहवध प्र कार क े धाहमणक हवचार िं क व्य ि हकया। प्र श्न - ' ब ादुर ' क ािी का कथावस्तु और सारािंश की व्य ाख्या कीनिए ? उतर - क ािी की कथावस्तु ‘ ब ादुर प्र हसद्ध क ानीकार श्र ी अमरकान्त द्व ारा रहचत एक मन वैज्ञाहनक हवधान क ानी ै । इसकी कथावस्तु आधुहनक मध्यवगीय समाजहदखावटी मानहसकता से ग्र ण की गई ै । क ानी में य बताया गया ै हक आज का मध्यमवगीय पररवार स्व यिं क समाज में उच्चवगीय और प्र हतहित व्य खि हदखाने क े हलए नौकर रखते ैं , जबहक उनकी आहथणक खथथहत इसकी इजाजत न ीिं देती । पररवार में नौकर क े आ जाने पर नौकर िं क े प्र हत उनका व्य व ार हकतना असभ्य और क्रू र जाता ै हक व मानवता की सारी दें पार कर जाता ै । आल च्य क ानी की कथावस्तु क े क े न्द्र में एक ऐसे ी प ाडी नौकर ब ादुर की क ानी ै । कथावस्तु में इस बात क िी मुख्य हवर्य क े रू प में उठाया गया ै हक नौकर की िी अपनी मान प्र हतिा और िावना ती ै , िले ी व बालक क्य िं न ब ादुर - क ािी का सारािंश ( कथािक) हदलब ादुर एक प ाडी नेपाली लडका ै , ज इस क ानी का नायक ै । व एक अस ाय बालक ै । उसक े हपता की युद्ध में मृत्यु चुकी थी। उसकी माूँ उसे बहत पीटती थी। इसहलए व घर से िाग आया और उसने एक मध्यमवगी य पररवार में नौकरी कर ली। ब ादुर बडे पररश्रम से घर में काम करने लगा । 16 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ गृ स्व ाहमनी हनमणला उसक े काम से बहत खुश थी । हनमणला ने उसका नाम ‘ ब ादुर रखा । ब ादुर की मे नत क े कारण मकान साफ - सुथरा र ने लगा और घर में सिी सदस्य िं क े कपडे साफ र ने लगे । ब ादुर देर रात तक काम करता और सुब जल्दी उठकर काम में जुट जाता । व इसी में खुश था और र समय ूँ सता र ता था । व रात क स ते समय प ाडी िार्ा में क ई गीत गुनगुनाता र ता था । ूँ सना और ूँ साना मान उसकी आदत बन गई थी। हनमणला का बडा लडका हकश र एक हबगडा हआ लडका था । व शान - शौकत और र ब - दाब से र ने का समथणक था । उसने अपने सारे काम ब ादुर क सौिंप हदए थे । यहद ब ादुर उसक े काम में तहनक - सी िी असावधानी बरतता त उसे गाहलयाूँ हमलतीिं । इतना ी न ीिं , व छ टी - छ टी सी बात पर ब ादुर क पीटता िी था । हपटकर ब ादुर एक क ने में चुपचाप खडा जाता और क ु छ देर बाद घर क े कायों में पूवणवत् जुट जाता । एक हदन हकश र ने ब ादुर क सूअर का बच्चा क हदया । ब ादुर इस गाली क स न न कर सका , उसका स्व ाहिमान जाग गया और उसने उसका काम करने से इनकार कर हदया । जब हनमणला क े पहत ने िी उसे िाूँटा त उसने क ा - "बाबूिी , भैया िे मेरे मरे बाप को क् ोिं लाकर िडा नकया ?" इतिा क कर व रो पडा। प्र ारि में हनमणला ब ादुर क बहत प्य ार से रखती थी तथा उसक े खाने – पीने बहत ध्य ान रखती थी , लेहकन क ु छ हदन िं क े बाद उसका व्य व ार िी बदल गया । उसने ब ादुर की र टी सेंकना बन्द कर हदया ।अब घर की खथथहत य गई थी हक जरा - सी गलती ने पर िी हकश र और हनमणला उसे पीटते । मारपीट और गाहलय िं क े कारण ब ादुर से गलहतयाूँ और िूलें अहधक ने लगीिं । एक रहववार क हनमणला क े ररश्तेदार अपनी पत्नी और बच्च िं क े साथ हनमणला क े घर आए । नाश्ता करने क े बाद बात िं की जलेबी छनने लगी। अचानक उस ररश्त े दार की पत्न ी नीचे फशण पर झुककर देखने लगी और चारपाई पर कमरे क े अन्द र िी छानबीन करने लगी। पूछने पर उसने बताया हक उसक े ग्य ार रु पये ख गए ैं , ज उन्ह िं ने चारपाई पर ी हनकालकर रखे थे। इसक े बाद सबने ब ादुर पर सन्दे हकया। 17 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ अचानक उस ररश्त े दार की पत्न ी नीचे फशण पर झुककर देखने लगी और चारपाई पर कमरे क े अन्द र िी छानबीन करने लगी। पूछने पर उसने बताया हक उसक े ग्य ार रु पये ख गए ैं , ज उन्ह िं ने चारपाई पर ी हनकालकर रखे थे। इसक े बाद सबने ब ादुर पर सन्दे हकया। ब ादुर से पूछा गया। उसने रु पये उठा लेने से इनकार कर हदया । उसे खूब पीटा िी गया और पुहलस क े सुपुदण करने की धमकी िी दी गई । हनमणला ने िी ब ादुर क िराया , धमकाया और पीटा । सब स च र े थे हक हपटाई क े िर से व अपना अपराध स्व ीकार कर लेगा , लेहकन जब उसने रु पये हलए ी न ीिं त व क ै से क ता हक रु पये उसने उठाए थे । इस घटना क े बाद से घक े सिी सदस्य ब ादुर क सन्दे की दृ हि से देखने लगे और उसे क ु त्त े की तर दुत्कारने लगे। उस हदन क े बाद से ब ादुर बहत ी खखन्न र ने लगा और एक हदन द प र क अपना हबस्तर , प नने क े कपडे , जूते आहद सिी सामान छ डकर घर से चला गया। हनमणला क े पहत शाम क जब दफ्तर से लौटे त उन्ह िं ने हनमणला क हसर पर ाथ रखे परेशान देखा । आूँगन गन्दा पडा था , बतणन हबना मूँजे पडे थे और घर का सामानिं अस्त - व्य स्त था । कारण पूछने पर पता चला हक ब ादुर अपना सामा न छ डकर घर से चला गया। हनमणला , उसक े पहत और हकश र क उसकी ईमानदारी पर हवश्वास गया था। उन्ह िं ने क ा हक ररश्तेदार िं क े रु पये िी उसने न ीिं चुराए थे हनमणला , उसका पहत और हकश र सिी ब ादुर पर हकए गए अत्याचार िं क े हलए पश्चात्ताप करने लगे। प्र श्न – दो बेलो की कथा में लेिक या पात्र क े द्व ारा समू या पूरी िानत का नचत्रण कीनिए ? उतर – लेिक या पात्र क े द्व ारा समू या पूरी िानत का नचत्रण लेखक िारतवाहसय िं क े सरल - सीधे स्व िाव क े हवर्य में व्य िं ग्य पूवणक य क ता ै - "बेचार लडाई - झगडा न ीिं करते , चार बातें सुनकर गम खा जाते ैं , हफर िी बदमाश ैं ।" । अतः इस क ानी में झूरी , उसकी पत्नी , नौकर , झूरी का साला गया , बहधक चौकीदार इत्याहद पात्र िं क े साथ - साथ ीरा और म ती द न िं मुख्य पशु - पात्र िं क े शील - हनरूपण क अत्यिंत स्त रीय और स्व ािाहवक ी क ा जाएगा। िारतवाहसय िं , गध िं , सािंि िं , क ु त्त िं आहद क े हवर्य में िी क ानीकार क हटप्पहणयाूँ अत्यिंत सटीक और चुिती हई ैं । आचायण म ावीर प्र साद हद्ववेदी ने बैल िं क े हवर्य में एक कहवता में ऐसे ी पैने - तीखे कटाक्ष हकए थे। 18 All Rights reserved Manish Verma : DU SOL. Channel, Visit https://joshbadhao.com/ वास्तव में कथा - सम्राट मुिंशी प्र े मचिंद की अन्य क ाहनय िं की ी तर से य िी एक स द्द े श्य क ानी क ी जाएगी। श्र ी द्व ारकाप्रसाद हमश्र ने अपने ' क ृ ष्ण ायन ' में हलखा ै - करुणा आयभ धमभ आधारा। मािव - सा पशु सिंग व्य व ारा। गया , कािंजी - ाउस क े चौकीदार , बहधक , मटर क े खेत िं क े स्व ामी , हकसान िं और आरिंि में झूरी की पत्नी जैस िं क े द्व ारा प्र दहशणत व्य व ार क े आल क में ी रा य हनष्कर्ाणत्मक हटप्पणी करता ै हक - " मारी जान क क ई जान न ीिं समझता। '' समग्रतः य क ानी मुख्यतः पशुओिं क े प्र हत दया - िाव बनाये रखने क े हलए मानव मात्र क उपदेश करने क े हलए ी हलखी गई जान पडती ै । गौण रू प से बैल िं क े माध्यम से प्र े मचिंद ने उन्हीिं सरीखें िारतवाहसय िं क अपनी स्व तिंत्रता क े हलए सिंघर्ण करने और अपने जन्महसद्ध अहधकार िं क े हलए लडने - मरने का म ान् सिंदेश दे िाला ै । वस्तुतः य क ानी द बैल िं क ी कथा न ीिं , वरन् िारतीय िं और अिंग्रेज िं इन द जाहतय िं क िी एक व्य िं जनामयी कथा बन गई ै । स्व तिंत्रता - प्राखप्त से पूवण अिंग्रेज िं क े द्व ारा िी ि ले - िाव वृर्ि - सरीखे िारतवाहसय िं पर ऐसे ी हनममण अत्याचार हकए जाते थे , जैसे हक इस क ानी में हनरी द बैल िं ीरा और म ती पर हकए गए ैं । हजस प्र कार इन द न िं बैल िं क े मन िं में हवद्र क हचनगाररयाूँ सुलगती र ती ैं , उसी प्र कार किी िारतीय िं क े मन िं में िी सुलगा करती थीिं। इस प्र कार य क ानी पशुओिं क े हचत्र उलीकती - उलीकती पशुवत् व्य व ार करने वाले अिंग्रेज िं क े िी ' व्य िं ग्य - हचत्र ' उत्कीणण करने लग जाती ै । इस अथण में य रचना उियाथणकता से सिंपन्न क ी जा सकती ै । समानािं तर कथा - प्र सिंग की नई शैली य ाूँ पर क ानी का , उसक े हशल्प का एक अहविाज्य अिंग बनकर आई ै । प्र श्न - भारतेन् दुयुगीि िाटकोिं को प्र मुि नवशेषताओिं को स्प ष्ट कीनिए। उतर - भारतेंदु युग की नवशेषताएिं िारतेंदु युग ी आधुहनककालीन साह त्य रू पी हवशाल िवन की आधारहशला ै । हवद्वान िं में िारत िारतेंदु युग की समय - सीमा सन् 1857 से सन् 1900 तक स्व ीकार की ै , िाव , िार्ा , शैली आहद सिी दृ हिय िं से इस य ग में ह िं दी साह त्य की उन्नहत हई । ह िं दी साह त्य क े आधुहनककालीन िारतेंदु युग प्र वतणक क े रू प में िारतेंदु ररश्चिंद्र का नाम हलया जा ता ै । य रािरीय जागरण क े अग्र दूत थे। उनक े युग में रीहतकालीन